Sunday 12 August 2012

दो धाम की यात्रा - यमुनोत्री और गंगोत्री - भाग २


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चौथादिन – २4मई
हम लोग प्रातः 7 बजे स्नानादि से निवृत होकर तैयार हो गए. अब हमारा अगला पड़ाव हरसिल था जो कि गंगोत्री धाम से 20 किमी दूर है. जानकी चट्टी से बरकोट तक हमें वही रास्ता तय करना था जिससे हम कल आये थे. जानकी चट्टी से हरसिल की दूरी 209 किमी है जिसे आज हमें तय करना था . जानकी चट्टी से हरसिल का रास्ता निम्न है.
फूलचट्टी (2 किमी ) बनास (3 किमी) हनुमानचट्टी (3 किमी), राणाचट्टी (5 किमी), सयानाचट्टी (12 किमी) कुथनूर (15 किमी), गंगनाणी (9 किमी), बडकोट (58 किमी), धरासू, 3(16 किमी), नकुरी(12 किमी), उत्तरकाशी (5 किमी), गंगोरी (3 किमी), नेताला (6 किमी), मनेरी (14 किमी), भटवाडी (13 किमी), गंगनाणी (19 किमी) सूखी धार (12 किमी), हरसिल (11 किमी),
हम लोग करीब 10 बजे बरकोट पहुँच गए जहाँ से धरासू का रास्ता पकड़ लिया. बरकोट से 10 या 11 किमी आगे जाने पर एक पहाड़ पर चढ़ना होता है. यहाँ पर सड़क की हालत बहुत ही अच्छी है. इन पहाड़ो पर बहुत ही घने और लम्बे लम्बे बृक्ष है, जो इन पहाड़ों को सुन्दरता प्रदान करते है.
इस सडक पर हम जा ही रहे थे कि देखा आगे ट्रेफिक जाम है. सामने से आने वाली एक बस पहाड़ के मोड़ पर फँस गयी थी क्योंकि उसके सामने भी एक बस आ गयी थी. उस बस के पीछे कई सारी गाड़ी आ रही थी बस पीछे रिवर्स करना मुश्किल था. देखते ही देखते दोनों ओर गाडिओं का जाम लग गया. ऐसा लग रहा था जैसे दिल्ली के किसी जाम में फंस गएँ हैं. अंतर वस इतना ही था कि दिल्ली कि तरह यहाँ कोई गाड़ी वाला ओवरटेक कर आगे अपनी गाड़ी ले जाने की कोशिश नहीं कर रहा था. करता भी कैसे जगह ही नहीं थी. दूसरे एक तरफ पहाड़ दूसरी तरफ गहरी गहरी खाई. यहाँ हम आधा घंटा जाम में खड़े रहे. तभी उत्तराखंड पुलिस का एक जवान आया उसने यात्रियों कि मदद से ट्रेफिक क्लीअर करना शुरू किया. इसके लिए हमारी साइड से आने वाले सभी वाहनों को लगभग 200 मीटर गाड़ी रिवेर्स करनी पढ़ी.तब रास्ता बन पाया. एक बजे हम धरासू पहुंचे. धरासू से ही राष्ट्रीय राज मार्ग 108 कि शुरुआत होती है. यही राजमार्ग उत्तरकाशी होते हुए गंगोत्री तक जाता है. जबकि सीधे हाथ पर जाने वाला रास्ता ऋषिकेश जाता है. धरासू से उत्तरकाशी कि दूरी 21 किमी है. उत्तरकाशी से गंगोत्री 100 किमी है. धरासू से उत्तरकाशी के रास्ते में भी सड़क चौडीकरण का काम चल रहा है इसी वजह से सड़क कहीं बहुत अच्छी कहीं बहुत ही ख़राब है. कभी कभी तो ऐसी सड़क आयी मानो कोई कम चौड़ा रनवे हो. दो बजे हम उत्तरकाशी पहुँच गए. उत्तरकाशी उत्तराखंड राज्य का एक प्रमुख नगर है तथा धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण शहर है. यह नगर भागीरथी नदी के तट पर बसा है. इसका प्राचीन नाम बाडाहात था. यहाँ भगवान् विश्वनाथ का प्रसिद्द मंदिर है. उत्तरकाशी का एक अन्य आकर्षण पर्वतारोहण है. यहाँ से हर की दून, डोडिताल, यमुनोत्री और गंगोत्री के पर्वतारोहण किया जा सकता है. यह शहर समुद्र तल से ११५८ मीटर कि ऊंचाई पर है. उत्तरकाशी के आसपास मनीरी, गंगनी, डोडिताल एवं दायरा बुग्याल नामक पर्यटन स्थल है. उत्तरकाशी से 3 किमी आगे गंगेरी में हमने दुपहर का भोजन कर आगे की यात्रा जारी रखी. आगे भी सड़क के चौडीकरण का काम चल रहा है इसलिए सड़को की हालत बहुत ख़राब है. भटवारी के बाद सड़क कुछ ठीक है तथा चौड़ी भी है. हम लोग सूखी तोप पहुँचने वाले ही थे की सामने से आ रही बस के एक ड्राईवर सरदारजी ने हमसे कहा की आगे आप की गाड़ी पत्थरो एवं पानी से नहीं निकल पाएगी, क्योंकि रास्ता संकरा है तथा पत्थरो पर पानी बह रहा है. हम लोग थोडा चिंतित हो गये की अब क्या होगा. खैर अब पीछे तो नहीं जा सकते थे, हमारे सामने  कुछ दूरी पर एक टाटा इंडिका जा रही थी. हमने सोचा की यदि टाटा इंडिका पानी से निकल गयी तो हमारी गाड़ी भी अवश्य निकल जायेगी. आगे जा रही टाटा इंडिका आसानी से पानी में से निकल गयी. उसी से प्रेरणा लेकर हमने अपनी गाड़ी निकाल ली. ऐसी कोई डरने वाली बात नही थी, खामखा ही सरदार जी ने डरा दिया. सूखी तोप के बात सड़के काफी संकरी है इसलिए जगह जगह फिर जाम  मिलने लगे. जब हम गंगनानी पहुंचे तब तक अँधेरा होने लगा था. पहाड़ो में अँधेरा होने पर गाडी चलाना खतरे से खाली नही है. सर्कार भी हिदायत देती है की रात में वाहन न चलाये. अब हमे हरसिल पहुंचना मुश्किल लग रहा था इसलिए हमने विचार किया की अब जो भी जगह आएगी जहाँ ठहरने की व्यवस्था होगी वहीँ रुक जायेंगे. पहाड़ से उतरते ही हमे एक गाँव दिखाई दिया. वहा पर ठहरने के लिए कुछ होटल थे. यह भागीरथी नदी के तट पर बसा झाला गाँव है. यही पर हमने रात्रि विश्राम का निश्चय किया और एक होटल में कमरा लेकर वही रुक गए. हरसिल यहाँ से सिर्फ 6 किमी की दूरी पर था, लेकिन रात हो जाने के कारण हमने हरसिल जाकर रुकने का विचार त्याग दिया.

झाला गाँव 

अभी हमारा सीधे ही गंगोत्री जाने का कार्यक्रम था इसलिए सोचा कि वापसी में हरसिल रुका जायेगा. रास्ते में हरसिल के नज़ारे देख कर जी खुश हो गया. यहाँ सड़क कि हालत भी बहुत अच्छी है.
हरसिल, उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग पर स्थित एक ग्राम और कैण्ट क्षेत्र है। हरसिल समुद्र तल से 7860 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से 30 किलोमीटर की दूरी गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान है.जो 1553 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है।यहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। है। पूरी घाटी में नदी-नालों और जल प्रपातों की भरमार है। हर कहीं दूधिया जल धाराएं इस घाटी का मौन तोडने में डटी हैं। नदी झरनों के सौंदर्य के साथ-साथ इस घाटी के सघन देवदार के वन मनमोहक हैं। जहां तक दृष्टि जाती है वृक्ष हि वृक्ष दिखाई देते हैं।  गंगोत्री जाने वाले अधिकतर तीर्थ यात्री हरसिल की इस सुंदरता का आंनंद लेने के लिये यहां रुकते हैं। अप्रैल से अक्टूबर तक हरसिल आना सुगम है, लेकिन बर्फबारी के चलते नवंबर से मार्च तक यहां बहुत कम ही पर्यटक पहुंच पाते हैं। हरसिल की घाटियों का सौंदर्य इन्हीं महीनों में खिलता है, जब यहां की पहाडियां और पेड बर्फ से अच्छादित रहते हैं। हरसिल में सुरक्षा कि दृष्टि से विदेशी पर्यटकों के ठहरने पर प्रतिबंध है। विदेशी पर्यटक हरसिल होकर गंगोत्री, गौमुख और तपोवन सहित हिमालय की चोटियो में तो जा सकते हैं लेकिन हरसिल में नहीं ठहर सकते हैं। हरसिल की सुन्दरता को राम तेरी गंगा मैली फिल्म में भी दिखाया जा चुका है। यहीं के एक झरने में फिल्म  की नायिका मन्दाकिनी को नहाते हुए दिखाया गया है। तब से इस झरने का नाम मन्दाकिनी झरना पड़ गया।
हरसिल से भैरों घाटी आती है. यहाँ पर भैरों जी का एक मंदिर है. खाने पीने के लिए भी स्थान है. यहीं पर वाहनों को गंगोत्री का पार्किंग शुल्क चुकाना पड़ता है. हम भी शुल्क देकर आगे बढ़ गए. यहाँ से एकदम खडी चढाई है.

भैरव मंदिर - भैरों घाटी

10.30 बजे हम गंगोत्री पहुँच गए. गाड़ी पार्क कर तुरंत प्रसाद ख़रीदा और दर्शनों के लाइन में लग गए. लाइन काफी लम्बी थी. करीब 1.30 घंटे लाइन में लगने के बाद हमें मां गंगोत्री के दर्शन का मौका मिला.

गंगोत्री गंगा नदी का उद्गगम स्थान है। गंगाजी का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। गंगा मैंया के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया गया था वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया था। प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी गंगा मैंया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है।

भागीरथी नदी 

पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी। इस पवित्र शिलाखंड के निकट ही 18 वी शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया गया। ऐसी मान्यता है कि देवी भागीरथी ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया। ऐसी भी मान्यता है कि पांडवो ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गये अपने परिजनो की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ का अनुष्ठान किया था। यह पवित्र एवं उत्कृष्ठ मंदिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट ऊंचे पत्थरों से निर्मित है। दर्शक मंदिर की भव्यता एवं शुचिता देखकर सम्मोहित हुए बिना नही रहते।

गंगोत्री मंदिर 
शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है। यह दृश्य अत्यधिक मनोहार एवं आकर्षक है। इसके देखने से दैवी शक्ति की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है। पौराणिक आख्यानो के अनुसार, भगवान शिव इस स्थान पर अपनी जटाओ को फैला कर बैठ गए और उन्होने गंगा माता को अपनी घुंघराली जटाओ में लपेट दिया। शीतकाल के आरंभ में जब गंगा का स्तर काफी अधिक नीचे चला जाता है तब उस अवसर पर ही उक्त पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते है।

गंगोत्री


गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूर 3,892 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गौमुख गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना तथा भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है। कहते हैं कि यहां के बर्फिले पानी में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। गंगोत्री से यहां तक की दूरी पैदल या फिर ट्ट्टुओं पर सवार होकर पूरी की जाती है। चढ़ाई उतनी कठिन नहीं है तथा कई लोग उसी दिन वापस भी आ जाते है। गंगोत्री में कुली एवं ट्ट्टु उपलब्ध होते हैं।



25 किलोमीटर लंबा, 4 किलोमीटर चौड़ा तथा लगभग 40 मीटर ऊंचा गौमुख अपने आप में एक परिपूर्ण माप है। इस गौमुख ग्लेशियर में भगीरथी एक छोटी गुफानुमा ढांचे से आती है। इस बड़ी वर्फानी नदी में पानी 5,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक बेसिन में आता है जिसका मूल पश्चिमी ढलान पर से संतोपंथ समूह की चोटियों से है।




पहले हमारा प्रोग्राम गौमुख तक भी जाने का था पर समय कि कमी के कारण संभव नहीं हो सका क्योंकि हमें रविवार तक दिल्ली पहुंचना जरूरी था. हम दिल्ली में बच्चों की मौसीजी को छोड़ कर आये थे उन्हें सोमवार को सुबह अपनी कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए काठमांडू की फ्लाईट पकडनी थी. हाँ यहाँ पर हम लोग एक बात लिखना ही भूल गए यात्रा की तमाम जानकारी इन्टरनेट आदि पर पड़ने से पता लगा था कि टेलिफ़ोन और मोबाइल सेवाएं अच्छी तरह से काम नहीं करती केवल बी एस एन एल सेवाएं ही ठीक काम करती है. हमारे पास भारत संचार का कोई कनेक्सन नहीं था. इसलिए हम लोग घर पर पिछले दो दिन में बात नहीं कर पाए थे. यहाँ पर एस टी डी बूथ भी ज्यादा नहीं है. हमने हरिद्वार में कहीं पर रिलायंस का विज्ञापन देखा था जिसमे दावा किया था उनका नेटवर्क पुरे उत्तराखंड में है. विशाल के पास  रिलायंस का सिम था उसकी तो यह हालत हुई कि ऋषिकेश  से आगे निकलते ही मोबाइल ने काम  बंद कर दिया बाकी लोगों के पास  वोडाफ़ोन था जिसने उत्तरकाशी तक साथ दिया. जो लोग इस पोस्ट को पढ़ रहें है और उनका इस यात्रा का कोई प्रोग्राम  है उनके लिए सलाह है कि वे भारत संचार का एक  सिम  साथ अवश्य ले जाएँ.

दोपहर दो बजे हमने अपनी वापसी गंगोत्री से कर डाली. हमारा प्रोग्राम उत्तरकाशी में रात्रि विश्राम का था. वापसी में हरसिल के पास एक विउ पॉइंट है. वहां कुछ देर रूककर फोटो बगैरा खींचे . यहाँ हवा इतनी तेज चल रही थी कि खड़ा होना मुश्किल हो गया यहाँ तक कि कैमरा हाथ में संभालना मुश्किल था.


यहाँ से आगे चले तो फिर वही मुसीबत जाम की. इस बार जाम में वाहन रुक रुक कर चल रहे थे कभी लम्बे समय तक खड़े रहते. जाम की वजह से हरसिल में कुछ देर रुकने के प्रोग्राम को टालना पड़ा. हालाँकि एक जगह रास्ते में गाड़ी को छोड़कर हम दूर भागीरथी नदी के तट पर  कुछ देर बैठ कर नदी के पानी का आनंद ले आये. जाम के कारण ऐसा लग नहीं रहा था कि हम शाम तक उत्तरकाशी पहुँच पाएंगे. हुआ भी वही. अँधेरा होने तक हम गंगनानी पहुँच गए. यही पर रात में रुकने का निश्चय किया. यहाँ पर सड़क के नजदीक ऊपर पहाड़ी पर गरम पानी का कुंड है. तय किया कि सुबह वहीं स्नान किया जायेगा. यहाँ पर अच्छी तादाद में होटल है. होटल वाले ने ही बताया कि नवम्बर एवं दिसंबर में यहाँ के होटल विदेशी पर्यटकों से भरे रहते जो यहाँ बर्फ का आनंद लेने आते है. हमने एक होटल में बड़ा सा कमरा ले लिया और वहीँ जम गए. होटल में साज सज्जा भी विदेशी पर्यटकों के अनुसार की गयी है.



गंगनानी 

छठादिन- 26  मई

आज हमारा प्रोग्राम ऋषिकेश या हरिद्वार तक की यात्रा का था जो यहाँ से लगभग 200 किमी है. इसलिए आज थोडा देर से उठे. पास में गरम कुंड जाकर स्नान किया. गरम कुंड का रास्ता होटल के पीछे से था जहाँ से कुंड मात्र 100 मीटर की दूरी पर है. कुंड के पास कई दुकाने पूजा प्रसाद की व् खाने के रेस्तरा है. कुंड में पानी वहुत ही साफ़ था ऐसा लग रहा था कि किसी होटल का स्विमिंग पूल हो. वहां पर कुंड का प्रबंध देखने वाली संस्था के प्रतिनिधि ने बताया कि कुंड कि रोज रात को सफाई की जाती है. संस्था द्वारा किये जा रहे इस कार्य के उन्हें साधुवाद.

गरम कुंड - गंगनानी 
इसके पश्चात् हमने गंगनानी से विदा ली और 12 बजे उत्तरकाशी पहुंचे यहाँ पर हमारी गाड़ी को भी खुराक कि जरूरत थी . अत; गाडी में पेट्रोल भरवाया. यहीं आकर पता चला कि हमारी सरकार ने पेट्रोल के दामों में 7.50 रूपए की वृदि कर दी है. हमें पता भी कैसे चलता हम दो तीन दिनों से संचार माध्यमों से बिलकुल कटे हुए जो थे. उत्तरकाशी से चंबा पहुच कर सोचा कि लगे हाथों टिहरी बाँध का भी चक्कर लगा लिया जाये. बाँध का चक्कर लगा कर वापस चंबा आकर ऋषिकेश की ओर चल दिए और शाम सात बजे तक ऋषिकेश पहुंचे . पहले यहीं रुकने का विचार किया बाद में सोचा कि चलो हरिद्वार में ही रुकेंगे. शनिवार का दिन होने के कारण सारे होटल बुक थे. बड़ी मुश्किल से एक जगह मिली. इस प्रयास में रात के बारह बज गए थे. हम खाना खाकर तुरंत सो गए.




सातवाँदिन- 27 मई



आज हमारा कार्यक्रम दोपहर बाद तक दिल्ली पहुँच जाने का था. चूँकि रात को देर से सोये थे इसलिए देर से जागे. होटल से चेक आउट कर सीधे ही हर की पौरी पहुँच गए.

हर की पैड़ी 

वहां स्नान कर दिल्ली के रवाना हो गए. रास्ते में मुज्ज़फ्फर नगर से पहले खाना खाया. आज कई दिनों के बाद गाड़ी में पांचवा गेअर लगाने का मौका मिला. सरपट दौड़ते हुए दिल्ली अपने घर पहुंचे जहाँ पर बच्चे हमारा इंतजार कर रहे थे. इस तरह से हमारी यात्रा का समापन हुआ. कुल मिलकर इन सात दिनों में हमने 1350 किमी की यात्रा की थी.

Friday 10 August 2012

दो धाम की यात्रा – यमुनोत्री और गंगोत्री


हम लोग काफी दिनों से सोच रहे थे कि यमुनोत्री एवं गंगोत्री की यात्रा की जाये परन्तु बच्चों के एग्जाम की वजह से कार्यक्रम बन नहीं पा रहा था. बच्चो ने ही सुझाव दिया कि क्यों ना आप लोग अकेले ही चले जाओ क्योंकि यह समय चारधाम यात्रा का भी है रास्ते में बहुत सारे साथी मिल जायेंगे. फिर भी हम दोनों पति पत्नी को लग रहा था कि बच्चो को कैसे अकेले दिल्ली में छोड़कर जाएँ. तभी एक विचार दिमाग में आया कि क्यों न बच्चों कि मौसी जो कि बिजनौर में रहती हैं उनको दिल्ली बुला लिया जाये उनका बेटा भी दिल्ली में हमारे ही साथ रहकर पढाई कर रहा हैं.यह आईडिया काम कर गया वह दिल्ली आने को तैयार हो गयीं.
अब आगे का कार्यक्रम तय करना था कि कैसे जाया जाये सोचा कि अपनी मारुती स्विफ्ट से ही चला जाये ताकि रास्ते में आने वाली खूबसूरत जगहों का भी आनंद लिया जा सके. अब हम दो यात्री तो तैयार ही थे हमारी दीदी का पुत्र रंजीत जो दिल्ली में ही रहता था वह भी चलने को तैयार हो गया. अब हम तीन लोग हो गए थे. यात्रा 6 मई 2012 से प्रारंभ करने का विचार था तभी एक और आईडिया आया कि क्यों न दीदी के दूसरे पुत्र एवम उसकी पत्नी को साथ में ले लिया जाये जो कि बरेली (उत्तर प्रदेश) में रहते हैं. वह दोनों लोग भी साथ चलने को तैयार थे परन्तु एक समस्या आ गयी कि विशाल की पत्नी अनु की 8 मई से 21 मई तक स्नातकोत्तर की परीक्षायें थीं. परीक्षा को ध्यान में रखते हुए हम लोगो ने यात्रा कार्यक्रम में तबदीली की और यात्रा 21 मई से ही शुरू करने का कार्यक्रम बनाया. हम लोगों ने भारत के समस्त महत्वपूर्ण स्थानों की यात्रा की हैं कभी अपनी गाड़ी से कभी ड्राईवर को साथ लेकर.  किन्तु यह ऐसी पहली यात्रा होने जा रही थी  जिसमे काफी दूरी तक पहाड़ो पर 11000 फीट की ऊंचाई तक यात्रा होनी थी और मैं अकेला गाडी चलाने वाला था हालाँकि दोनों भांजे गाड़ी चलाना जानते हैं परन्तु पहाड़ो पर गाडी चलाने का अनुभव नहीं है. खैर हिम्मत करके अकेले ही चलाने का मन बना लिया. हमने पूरी यात्रा का कार्यक्रम निम्नानुसार बनाया.
२१ मई – दिल्ली-मेरठ -मुज्ज़फ्फर नगर- रूडकी -हरिद्वार (रात्रि विश्राम हरिद्वार में)
२२ मई – हरिद्वार-ऋषिकेश -नरेन्द्र नगर- चंबा- धरासू – बरकोट (रात्रि विश्राम  बरकोट में)
२३ मई – बरकोट- जानकी चट्टी- यमुनोत्री धाम ( रात्रि विश्राम जानकी चट्टी में)
२४ मई – जानकी चट्टी-बारकोट-धरासू-उत्तरकाशी-गंगनानी-हरसिल (रात्रि विश्राम हरसिल)
२५ मई – हरसिल- गंगोत्री धाम – गंगोत्री धाम- गंगनानी- उत्तरकाशी- धरासू- ऋषिकेश (रात्रि विश्राम ऋषिकेश)
२६ मई – ऋषिकेश – हरिद्वार- रूडकी-मुज्ज़फ्फर नगर – मेरठ – दिल्ली
उपरोक्त तय कार्यक्रमानुसार मैंने विशाल को कह दिया था कि तुम लोग बरेली से सीधे ही बस पकड़कर हरिद्वार पहुँच जाना जहाँ पर हम लोग इंतज़ार करेंगे. अनु का अंतिम एक्साम 21 मई को 12 बजे समाप्त होना था इसलिए विशाल को सुझाव दिया था कि एग्जाम समाप्त होते ही सबसे पहली बाली बस में हरिद्वार के लिए बैठ जाओ ताकि समय पर हरिद्वार पहुँच कर हमें मिल जाये क्योंकि हमारा सायं 7 बजे तक हरिद्वार पहुँच जाने का विचार था. सारी तैयारी 20 मई की रात को कर ली थी इसलिए एग्जाम समाप्त होते ही प्रस्थान करने में कोई समस्या नहीं थी. हम लोग नियत समय पर दिन के एक बजे दिल्ली से प्रस्थान कर गए. रास्ते में मेरठ पहुँचने से पहले सोचा कि विशाल से पता लगाया जाये कि वह लोग निकले हैं कि नहीं, पता चला कि उनका मोबाइल नाट रीचेबल था. समय लगभग 2.30 का था. खैर हमने अपनी यात्रा जारी रखी. जब हम मुज्ज़फ्फर नगर पहुँचने ही वाले थे कि विशाल का फ़ोन आया उसने बताया कि वह लोग घर से दो बजे निकले थे और बस स्टैंड पर खड़े हैं.  हरिद्वार जाने बाली कोई बस उपलब्ध नहीं है. समय लगभग चार बजे का था. अब निश्चित रूप से वह लोग समय पर हरिद्वार पहुँचने में असमर्थ थे क्योंकि कोई भी बस उन्हें हरिद्वार पहुँचाने में लगभग आठ घंटे लगाने वाली थी. हमने उन्हें सुझाव दिया कि वे तुरंत मुरादाबाद जाने बाली बस पकड़ ले वहां पहुंचकर शायद उन्हें हरिद्वार की बस मिल जाये. बरेली से मुरादाबाद के रास्ते दिल्ली जाने वाली बसें बरेली में हर दस मिनट पर मिलती है, इसलिए उन्हें मुरादाबाद की बस मिलने में कोई दिक्कत नहीं हुई. हम लोगों ने जैसे ही मुजफ्फर नगर पार किया कि विशाल का फ़ोन आया कि वे लोग मुरादाबाद की बस में बैठ गए हैं और बस चल पड़ी है. हमने थोड़ी राहत की सांस ली चलो यात्रा तो शुरू हुई. हम लोग लगभग सायं 6.30 बजे हर की पैड़ी पहुँच गए. हर की पैड़ी का मुख्य आकर्षण गंगा जी की आरती आरंभ होने ही वाली थी हमने तुरंत गाड़ी पार्किंग में लगाकर गंगाजी के मंदिर की तरफ दौड़ लगा दी ताकि आरती न निकल जाये. वैसे तो आरती के समय पर हमेशा ही बहुत भीड़ रहती है लेकिन चार धाम यात्रा के चलते भीड़ बहुत ही ज्यादा थी.
आरती दर्शन कर हमने गंगाजी में दीपकों को प्रवाहित किया और मां गंगा से विदा ली. अब हमारा अगला कार्यक्रम ठहरने के लिए होटल की तलाश करना था. हमने पहले से किसी भी होटल में कोई बुकिंग नहीं कराई हुई थी.
हमारे सहयात्री रंजीत को जलेबी खाने का बड़ा ही शौक है, रास्ते में एक जलेबी की दुकान पर जलेबी बन रही थी. रंजीत का मन आया की जलेबी खरीदी जाएँ, जलेबी खरीद कर खाई. जलेबी ऐसी की खाते खाते मुंह दुःख गया. खैर हमारी होटल की तलाश पूरी हुई हमने एक होटल में दो कमरे लेकर अपना डेरा वहीँ जमा दिया और करने लगे इंतज़ार विशाल और अनु का जिन्हें मुरादाबाद से हरिद्वार की बस मिल गयी थी. और वे लगभग 12 बजे तक हरिद्वार पहुँचने वाले थे.
दूसरादिन – 22 मई
आज का हमारा प्रोग्राम शाम तक बरकोट पहुँचने का था. इसके बारे में रात को ही सारे लोगों को बता दिया था. विशाल और अनु रात को 1 बजे हरिद्वार पहुंचे थे. इसलिए हम सभी को सोते सोते रात के दो बज गए थे. लेकिन फिर भी हम सभी 6 बजे सोकर उठ गए और स्नान इत्यादि के पश्चात् आठ बजे तक तैयार हो गए और यात्रा के लिए आगे निकल पड़े. हम लोग तय कार्यक्रमानुसार ऋषिकेश होते हुए चंबा बरकोट तक जाने वाले थे. होटल से निकलने के बाद हमने ऋषिकेश हाईवे पकड़ लिया. चारधाम यात्रा के कारण जगह जगह ट्रेफिक जाम था लेकिन उत्तराखंड पुलिस के जवान मुस्तेदी से ट्रेफिक को क्लीअर कर रहे थे. करीब नौ बजे हम ऋषिकेश मुनि की रेती पहुँच गए. यहाँ गंगा तट पर कुछ समय बिताकर आगे चल दिए . हमें नरेन्द्र नगर के रास्ते चंबा जाना था. ऋषिकेश से एक रास्ता सीधे बद्रीनाथ धाम जाता है जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग 58 कहते हैं. एक रास्ता बायीं ओर है जो नरेन्द्र नगर जाता है यह राष्ट्रीय राजमार्ग 94 है.गाड़ी में हम आगे की यात्रा के बारे में बाते करने में इतने मशगूल थे कि हमें रास्ते का ध्यान ही नहीं रहा और हम सीधे ही   राजमार्ग 58 पर बढ़ गए. लगभग आठ किलोमीटर जाने के बाद हमने माईलस्टोन को देखना शुरू किया तो एहसास हुआ कि हम गलत रास्ते पर आ गयें हैं. तभी मेरी पत्नी अंजना ने बताया कि उन्होंने पीछे कहीं एक बोर्ड देखा था जिस पर नरेन्द्र नगर और चंबा लिखा था. अब क्या करते वापस जाने के सिवा कोई चारा ही नहीं था. गाड़ी में रिवर्स गेअर लगाया और वापस चल दिए. करीब आधा किलोमीटर जाने के बाद दो रास्ते दिखे एक रास्ता ऋषिकेश के लिए और दूसरा रास्ता नरेन्द्र नगर जा रहा था शायद यह ऋषिकेश बाय पास होगा. ऋषिकेश से नरेन्द्र नगर कि दूरी लगभग 20 किलोमीटर  है जिसे हमने 40 मिनट में तय कर लिया रोड बहुत ही शानदार है. इसलिए समय भी कम लगा. नरेन्द्र नगर एक छोटा सा लेकिन ख़ूबसूरत शहर है यहाँ का बाजार बहुत अच्छी तरह से बसाया गया है. नरेन्द्र नगर शहर कि समुद्र तल से ऊँचाई 1326 मीटर है वर्तमान नरेन्द्र नगर 1919 में अस्तित्व में आया जब टिहरी के राजा नरेन्द्र शाह ने अपनी राजधानी को टेहरी से यहाँ स्थानांतरित किया.
नरेन्द्र नगर से चंबा की दूरी 44 किलोमीटर है. हम लोग हरिद्वार से सुबह आठ बजे निकले थे. नाश्ता भी नहीं किया था इसलिए सभी लोगों को भूख लगने लगी थी. लेकिन रास्ते में कोई अच्छा रेस्टोरंट नहीं मिला. एक चाय की दुकान नजर आयी जहाँ पर हमने दिल्ली से अपने साथ लाये नमकीन बिस्किट का सेवन किया और चाय पी. नरेन्द्र नगर से चंबा के रास्ते में हिंदोलाखाल, आगरखाल, फरकोट, आमपाता, जाजल, खहदी, नागनी गाँव आते हैं. दिन के 1.30 बजे हम लोग चंबा पहुँच गए. चंबा नगर उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले की नगर पंचायत है. समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1524 मीटर (5000 फीट)  है. चंबा शहर से उत्तराखंड के तीन मुख्य शहरों टेहरी, ऋषिकेश और मसूरी के लिए सड़कें जाती है.चंबा के पास धनौल्टी,सुरकंडा देवी मंदिर , कानाताल पर्यटन स्थल है, चंबा से 20 किलोमीटर की दूरी पर दुनिया के सबसे ऊँचे बांधो में से एक टेहरी बांध है. यह बांध भागीरथी नदी पर बना है. इसका निर्माण 1978 में प्रारंभ हुआ था तथा इसे 2006 में इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया था. इस बांध की ऊंचाई लगभग 850 फीट  है.
चंबा से धरासू की दूरी 56 किलोमीटर है. चंबा से धरासू के रास्ते में चिन्याली सौर, बरेठी गाँव आते है. चिन्याली सौर में एक रेस्टोरंट में हमने दोपहर का खाना खाया. इसके बाद आगे की ओर चल दिए. धरासू एक छोटी सी जगह है. समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1339 मीटर है. यहाँ पर एक पॉवर स्टेशन भागीरथी नदी पर बना है. धरासू से दो किलोमीटर जाने पर एक बेंड आता है. यहाँ से एक सीधा रास्ता उत्तरकाशी होते हुए गंगोत्री तक जाता है. यहीं से राष्ट्रीय राजमार्ग 108 आरंभ होता है. बांयी ओर जाने वाला रास्ता यमुनोत्री जाता है. हमें इसी रास्ते से जाना था. धरासू से इस रास्ते के चौडीकरण का काम चल रहा है.  इसलिए सड़क की हालत बहुत ही ख़राब है. लगभग सात- आठ किलोमीटर तक रास्ता अत्यंत ही ख़राब है. इसके बाद ब्र्हम्खाल नामक जगह आती है. ब्र्हम्खाल से बरकोट की दूरी 40 किलोमीटर है. रास्ते में गिनोती गाँव आता है. हम लोग शाम को लगभग सात बजे बरकोट पहुँच गए. धरासू से आने वाले रास्ते पर बरकोट से एक किलोमीटर दायीं ओर एक रास्ता यमुनोत्री को जाता है जबकि सीधा वाला रास्ता बरकोट जाता है. यही रास्ता आगे चलकर यमुना ब्रिज होते हुए मसूरी जाता है. जो यात्री देहरादून से आते हैं वे इसी रास्ते से यमुनोत्री जाते हैं. बारकोट पहुँच कर होटल की तलाश शुरू हो गयी. बरकोट यद्दपि बड़ी जगह है लेकिन यहाँ पर बहुत ज्यादा होटल नहीं है. केवल यमुनोत्री जाने वाले रास्ते पर कुछ होटल है. होटल की कमी के कारण होटल तलाशने में थोड़ी दिक्कत हुई परन्तु बाद में एक बड़ा सा कमरा मिल गया. खाने की व्यवस्था होटल में थी. इसलिए खाने की चिंता नहीं थी. बरकोट उत्तरकाशी जिले की नगर पंचायत है. समुद्र तल से बरकोट की ऊंचाई 1220 मीटर है. रात को खाना खाने के बाद हमने सोने की तयारी की क्योंकि सुबह हमने यमुनोत्री की यात्रा करनी थी.
तीसरादिन- 23 मई 
तीसरे दिन हम लोग सुबह 6 बजे सोकर उठ गए अब हमारा अगला लक्ष्य यमुनोत्री पहुँचने का था . बरकोट से जानकी चट्टी की दूरी 41 किलोमीटर है. हमारा कार्य क्रम कुछ इस प्रकार का था की हम लोगों यमुनोत्री दर्शन कर शाम तक पुन बरकोट लौट आये. ताकि अगले दिन हम यहाँ से सीधे गंगोत्री के लिए प्रस्थान कर सके. इन बातो को ध्यान में रखते हुए हमने सुबह सात बजे ही बरकोट से रवानगी कर डाली. बरकोट से निकलते ही रास्ता बहुत ही ख़राब है क्योंकि यहाँ भी सड़क के चौडीकरण का काम चल रहा है. बरकोट से 15 किमी दूर गंगोनी नामक स्थान पर हमने सुबह का नाश्ता कर अपनी यात्रा जारी रखी. बरकोट से जानकी चट्टी का रास्ता बहुत अच्छा नहीं. एक तो रास्ता ख़राब दुसरे चढाई इसलिए समय भी ज्यादा लग रहा था. चारधाम यात्रा के चलते ट्रेफिक भी ज्यादा था. सयाना चट्टी पहुँचने से पहले हमें जाम में भी फँसना पड़ा. लगभग 1 घंटा जाम में हम लोग खड़े रहे. उत्तराखंड पुलिस यहाँ पर भी जाम क्लीअर करने में मुस्तैदी से लगी हुई थी. सयाना चट्टी पार करने के बाद राणा चट्टी नामक जगह आती यहाँ पर भी जाम लगा हुआ था. यहाँ से जैसे तैसे आगे बढे की हनुमान चट्टी में फिर जाम से रूबरू होना पड़ा.   सारे जामों से जूझते हुए लगभग दो बजे के आस पास हम जानकी चट्टी पहुँच गए. जानकी चट्टी यमुनोत्री मंदिर जाने के लिए बसे कैंप है. यहाँ तक बसें, कारें आती है. बरकोट से यमुनोत्री के रास्ते में निम्नलिखित स्थान पड़ते है.
गंगनाणी (15 किमी), कुथूर (3 किमी), पाल गाड (9 किमी), सयानी चट्टी (5 किमी), राणाचट्टी (3 किमी), हुनमानचट्ट (3 किमी), बनास (2 किमी), फूलचट्टी (3 किमी पैदल चढ़ाई), जानकी चट्टी (5 किमी पैदल चढ़ाई), यमुनोत्री


जानकी चट्टी
 जानकी चट्टी

जानकी चट्टी बस अड्डा
जानकी चट्टी पहुँचते ही हमने होटल में शिफ्ट किया और यमुनोत्री मंदिर जाने की तयारी शुरू कर दी. चूँकि हम लोग यहाँ पर तय समय से काफी देर से पहुंचे थे. इसलिए रात को यहाँ रुकने के सिवा और कोई चारा भी नहीं था. हमने जल्दी जल्दी एक ढाबे पर खाना खाया और तीन बजे यमुनोत्री मंदिर के पैदल यात्रा शुरू कर दी. चारधाम यात्रा के कारण तीर्थयात्रियों की भीड़ बहुत थी. 5 किमी की यात्रा करने के पश्चात् शाम 5 बजे हम यमुनोत्री पहुँच गए. पहुँचते ही अचानक ठण्ड का एहसास हुआ. मंदिर के बाहर का फर्श बहुत ही ठंडा था. हमने प्रसाद बगैरा ख़रीदा और मंदिर में दर्शन के लिए चल दिए. हालाँकि रास्ते में यात्रिओं की भीड़ काफी थी परन्तु मंदिर में ज्यादा भीड़ नहीं. इसलिए जल्दी ही दर्शन हो गए.

यमुनोत्री मंदिर

यमुनोत्री मंदिर
यमुनोत्री मंदिर उत्तरकाशी जिले में 3291 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.यह मंदिर माता यमुना को समर्पित है. मंदिर में माता की मूर्ति काले संगमरमर की बनी हुई है. इस मंदिर का निर्माण जयपुर की रानी द्वारा कराया गया था. बर्फ और बाढ़ की बजह से यह मंदिर दो बार नष्ट हो गया था. मंदिर के कपट अक्षय तृतीया को खुलते है एवम यम द्वतीय को बंद होते है.यहाँ मंदिर के अलावा नाले, झरने, तथा गरम जल के स्रोत यात्रियों को आकर्षित करते हैं. मंदिर के समीप ही दिव्य शिला और सूर्य कुंड है. माना जाता है की इस गरम जल में स्नान करने से सभी चर्म रोग दूर हो जाते हैं. यहाँ गरम पानी में आलू एवम चावल पकाए जाते हैं. जिन्हें तीर्थयात्री प्रसाद के रूप में घर ले जाते है.
चार धामों में से एक धाम यमुनोत्री से यमुना का उद्गम मात्र एक किमी की दूरी पर है। यहां बंदरपूंछ चोटी (6315 मी ) के पश्चिमी अंत में फैले यमुनोत्री ग्लेशियर को देखना अत्यंत रोमांचक है। यमुना पावन नदी का स्रोत कालिंदी पर्वत है। तीर्थ स्थल से एक कि. मी. दूर यह स्थल 4421 मी. ऊँचाई पर स्थित है। दुर्गम चढ़ाई होने के कारण श्रद्धालू इस उद्गम स्थल को देखने से वंचित रह जाते हैं।
यमुनोत्री का वास्तविक स्त्रोत बर्फ की जमी हुई एक झील और हिमनद (चंपासर ग्लेसियर) है जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। इस स्थान से लगभग 1 किमी आगे जाना संभव नही है क्योकि यहां मार्ग अत्यधिक दुर्गम है। यही कारण है कि देवी का मंदिर पहाडी के तल पर स्थित है। अत्यधिक संकरी-पतली युमना काजल हिम शीतल है। यमुना के इस जल की परिशुद्धता, निष्कलुशता एवं पवित्रता के कारण भक्तजनों के ह्दय में यमुना के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति उमड पड़ती है। पौराणिक आख्यान के अनुसार असित मुनि की पर्णकुटी इसी स्थान पर थी। देवी यमुना के मंदिर तक चढ़ाई का मार्ग वास्तविक रूप में दुर्गम और रोमांचित करनेवाला है। मार्ग पर अगल-बगल में स्थित गगनचुंबी, मनोहारी नंग-धडंग बर्फीली चोटियां तीर्थयात्रियों को सम्मोहित कर देती हैं। इस दुर्गम चढ़ाई के आस-पास घने जंगलो की हरितिमा मन को मोहने से नही चूकती है।
मंदिर में दर्शन के पश्चात् हमने फोटो खींचे. मंदिर परिसर में लगभग एक घंटा बिताने के बाद हमने वापसी की यात्रा शुरू की और आठ बजे जानकी चट्टी अपने होटल पहुँच गए. सभी लोग काफी थक गए थे इसलिए ढाबे वाले को कहकर होटल के रूम में खाना माँगा लिया और खाना खाकर सो गए इस तरह हमारी एक धाम यमुनोत्री की यात्रा समाप्त हुई. अब दुसरे धाम गंगोत्री की यात्रा प्रारम्भ करनी थी. यह तय किया गया की सुबह जल्दी ही प्रस्थान कर देना है. ताकि रात तक हरसिल पहुँच कर वहां विश्राम किया जा सके.

गंगोत्री यात्रा के बारे में अगले भाग में 
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