Sunday 12 August 2012

दो धाम की यात्रा - यमुनोत्री और गंगोत्री - भाग २


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चौथादिन – २4मई
हम लोग प्रातः 7 बजे स्नानादि से निवृत होकर तैयार हो गए. अब हमारा अगला पड़ाव हरसिल था जो कि गंगोत्री धाम से 20 किमी दूर है. जानकी चट्टी से बरकोट तक हमें वही रास्ता तय करना था जिससे हम कल आये थे. जानकी चट्टी से हरसिल की दूरी 209 किमी है जिसे आज हमें तय करना था . जानकी चट्टी से हरसिल का रास्ता निम्न है.
फूलचट्टी (2 किमी ) बनास (3 किमी) हनुमानचट्टी (3 किमी), राणाचट्टी (5 किमी), सयानाचट्टी (12 किमी) कुथनूर (15 किमी), गंगनाणी (9 किमी), बडकोट (58 किमी), धरासू, 3(16 किमी), नकुरी(12 किमी), उत्तरकाशी (5 किमी), गंगोरी (3 किमी), नेताला (6 किमी), मनेरी (14 किमी), भटवाडी (13 किमी), गंगनाणी (19 किमी) सूखी धार (12 किमी), हरसिल (11 किमी),
हम लोग करीब 10 बजे बरकोट पहुँच गए जहाँ से धरासू का रास्ता पकड़ लिया. बरकोट से 10 या 11 किमी आगे जाने पर एक पहाड़ पर चढ़ना होता है. यहाँ पर सड़क की हालत बहुत ही अच्छी है. इन पहाड़ो पर बहुत ही घने और लम्बे लम्बे बृक्ष है, जो इन पहाड़ों को सुन्दरता प्रदान करते है.
इस सडक पर हम जा ही रहे थे कि देखा आगे ट्रेफिक जाम है. सामने से आने वाली एक बस पहाड़ के मोड़ पर फँस गयी थी क्योंकि उसके सामने भी एक बस आ गयी थी. उस बस के पीछे कई सारी गाड़ी आ रही थी बस पीछे रिवर्स करना मुश्किल था. देखते ही देखते दोनों ओर गाडिओं का जाम लग गया. ऐसा लग रहा था जैसे दिल्ली के किसी जाम में फंस गएँ हैं. अंतर वस इतना ही था कि दिल्ली कि तरह यहाँ कोई गाड़ी वाला ओवरटेक कर आगे अपनी गाड़ी ले जाने की कोशिश नहीं कर रहा था. करता भी कैसे जगह ही नहीं थी. दूसरे एक तरफ पहाड़ दूसरी तरफ गहरी गहरी खाई. यहाँ हम आधा घंटा जाम में खड़े रहे. तभी उत्तराखंड पुलिस का एक जवान आया उसने यात्रियों कि मदद से ट्रेफिक क्लीअर करना शुरू किया. इसके लिए हमारी साइड से आने वाले सभी वाहनों को लगभग 200 मीटर गाड़ी रिवेर्स करनी पढ़ी.तब रास्ता बन पाया. एक बजे हम धरासू पहुंचे. धरासू से ही राष्ट्रीय राज मार्ग 108 कि शुरुआत होती है. यही राजमार्ग उत्तरकाशी होते हुए गंगोत्री तक जाता है. जबकि सीधे हाथ पर जाने वाला रास्ता ऋषिकेश जाता है. धरासू से उत्तरकाशी कि दूरी 21 किमी है. उत्तरकाशी से गंगोत्री 100 किमी है. धरासू से उत्तरकाशी के रास्ते में भी सड़क चौडीकरण का काम चल रहा है इसी वजह से सड़क कहीं बहुत अच्छी कहीं बहुत ही ख़राब है. कभी कभी तो ऐसी सड़क आयी मानो कोई कम चौड़ा रनवे हो. दो बजे हम उत्तरकाशी पहुँच गए. उत्तरकाशी उत्तराखंड राज्य का एक प्रमुख नगर है तथा धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण शहर है. यह नगर भागीरथी नदी के तट पर बसा है. इसका प्राचीन नाम बाडाहात था. यहाँ भगवान् विश्वनाथ का प्रसिद्द मंदिर है. उत्तरकाशी का एक अन्य आकर्षण पर्वतारोहण है. यहाँ से हर की दून, डोडिताल, यमुनोत्री और गंगोत्री के पर्वतारोहण किया जा सकता है. यह शहर समुद्र तल से ११५८ मीटर कि ऊंचाई पर है. उत्तरकाशी के आसपास मनीरी, गंगनी, डोडिताल एवं दायरा बुग्याल नामक पर्यटन स्थल है. उत्तरकाशी से 3 किमी आगे गंगेरी में हमने दुपहर का भोजन कर आगे की यात्रा जारी रखी. आगे भी सड़क के चौडीकरण का काम चल रहा है इसलिए सड़को की हालत बहुत ख़राब है. भटवारी के बाद सड़क कुछ ठीक है तथा चौड़ी भी है. हम लोग सूखी तोप पहुँचने वाले ही थे की सामने से आ रही बस के एक ड्राईवर सरदारजी ने हमसे कहा की आगे आप की गाड़ी पत्थरो एवं पानी से नहीं निकल पाएगी, क्योंकि रास्ता संकरा है तथा पत्थरो पर पानी बह रहा है. हम लोग थोडा चिंतित हो गये की अब क्या होगा. खैर अब पीछे तो नहीं जा सकते थे, हमारे सामने  कुछ दूरी पर एक टाटा इंडिका जा रही थी. हमने सोचा की यदि टाटा इंडिका पानी से निकल गयी तो हमारी गाड़ी भी अवश्य निकल जायेगी. आगे जा रही टाटा इंडिका आसानी से पानी में से निकल गयी. उसी से प्रेरणा लेकर हमने अपनी गाड़ी निकाल ली. ऐसी कोई डरने वाली बात नही थी, खामखा ही सरदार जी ने डरा दिया. सूखी तोप के बात सड़के काफी संकरी है इसलिए जगह जगह फिर जाम  मिलने लगे. जब हम गंगनानी पहुंचे तब तक अँधेरा होने लगा था. पहाड़ो में अँधेरा होने पर गाडी चलाना खतरे से खाली नही है. सर्कार भी हिदायत देती है की रात में वाहन न चलाये. अब हमे हरसिल पहुंचना मुश्किल लग रहा था इसलिए हमने विचार किया की अब जो भी जगह आएगी जहाँ ठहरने की व्यवस्था होगी वहीँ रुक जायेंगे. पहाड़ से उतरते ही हमे एक गाँव दिखाई दिया. वहा पर ठहरने के लिए कुछ होटल थे. यह भागीरथी नदी के तट पर बसा झाला गाँव है. यही पर हमने रात्रि विश्राम का निश्चय किया और एक होटल में कमरा लेकर वही रुक गए. हरसिल यहाँ से सिर्फ 6 किमी की दूरी पर था, लेकिन रात हो जाने के कारण हमने हरसिल जाकर रुकने का विचार त्याग दिया.

झाला गाँव 

अभी हमारा सीधे ही गंगोत्री जाने का कार्यक्रम था इसलिए सोचा कि वापसी में हरसिल रुका जायेगा. रास्ते में हरसिल के नज़ारे देख कर जी खुश हो गया. यहाँ सड़क कि हालत भी बहुत अच्छी है.
हरसिल, उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग पर स्थित एक ग्राम और कैण्ट क्षेत्र है। हरसिल समुद्र तल से 7860 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से 30 किलोमीटर की दूरी गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान है.जो 1553 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है।यहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। है। पूरी घाटी में नदी-नालों और जल प्रपातों की भरमार है। हर कहीं दूधिया जल धाराएं इस घाटी का मौन तोडने में डटी हैं। नदी झरनों के सौंदर्य के साथ-साथ इस घाटी के सघन देवदार के वन मनमोहक हैं। जहां तक दृष्टि जाती है वृक्ष हि वृक्ष दिखाई देते हैं।  गंगोत्री जाने वाले अधिकतर तीर्थ यात्री हरसिल की इस सुंदरता का आंनंद लेने के लिये यहां रुकते हैं। अप्रैल से अक्टूबर तक हरसिल आना सुगम है, लेकिन बर्फबारी के चलते नवंबर से मार्च तक यहां बहुत कम ही पर्यटक पहुंच पाते हैं। हरसिल की घाटियों का सौंदर्य इन्हीं महीनों में खिलता है, जब यहां की पहाडियां और पेड बर्फ से अच्छादित रहते हैं। हरसिल में सुरक्षा कि दृष्टि से विदेशी पर्यटकों के ठहरने पर प्रतिबंध है। विदेशी पर्यटक हरसिल होकर गंगोत्री, गौमुख और तपोवन सहित हिमालय की चोटियो में तो जा सकते हैं लेकिन हरसिल में नहीं ठहर सकते हैं। हरसिल की सुन्दरता को राम तेरी गंगा मैली फिल्म में भी दिखाया जा चुका है। यहीं के एक झरने में फिल्म  की नायिका मन्दाकिनी को नहाते हुए दिखाया गया है। तब से इस झरने का नाम मन्दाकिनी झरना पड़ गया।
हरसिल से भैरों घाटी आती है. यहाँ पर भैरों जी का एक मंदिर है. खाने पीने के लिए भी स्थान है. यहीं पर वाहनों को गंगोत्री का पार्किंग शुल्क चुकाना पड़ता है. हम भी शुल्क देकर आगे बढ़ गए. यहाँ से एकदम खडी चढाई है.

भैरव मंदिर - भैरों घाटी

10.30 बजे हम गंगोत्री पहुँच गए. गाड़ी पार्क कर तुरंत प्रसाद ख़रीदा और दर्शनों के लाइन में लग गए. लाइन काफी लम्बी थी. करीब 1.30 घंटे लाइन में लगने के बाद हमें मां गंगोत्री के दर्शन का मौका मिला.

गंगोत्री गंगा नदी का उद्गगम स्थान है। गंगाजी का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। गंगा मैंया के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया गया था वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया था। प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी गंगा मैंया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है।

भागीरथी नदी 

पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी। इस पवित्र शिलाखंड के निकट ही 18 वी शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया गया। ऐसी मान्यता है कि देवी भागीरथी ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया। ऐसी भी मान्यता है कि पांडवो ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गये अपने परिजनो की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ का अनुष्ठान किया था। यह पवित्र एवं उत्कृष्ठ मंदिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट ऊंचे पत्थरों से निर्मित है। दर्शक मंदिर की भव्यता एवं शुचिता देखकर सम्मोहित हुए बिना नही रहते।

गंगोत्री मंदिर 
शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है। यह दृश्य अत्यधिक मनोहार एवं आकर्षक है। इसके देखने से दैवी शक्ति की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है। पौराणिक आख्यानो के अनुसार, भगवान शिव इस स्थान पर अपनी जटाओ को फैला कर बैठ गए और उन्होने गंगा माता को अपनी घुंघराली जटाओ में लपेट दिया। शीतकाल के आरंभ में जब गंगा का स्तर काफी अधिक नीचे चला जाता है तब उस अवसर पर ही उक्त पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते है।

गंगोत्री


गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूर 3,892 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गौमुख गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना तथा भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है। कहते हैं कि यहां के बर्फिले पानी में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। गंगोत्री से यहां तक की दूरी पैदल या फिर ट्ट्टुओं पर सवार होकर पूरी की जाती है। चढ़ाई उतनी कठिन नहीं है तथा कई लोग उसी दिन वापस भी आ जाते है। गंगोत्री में कुली एवं ट्ट्टु उपलब्ध होते हैं।



25 किलोमीटर लंबा, 4 किलोमीटर चौड़ा तथा लगभग 40 मीटर ऊंचा गौमुख अपने आप में एक परिपूर्ण माप है। इस गौमुख ग्लेशियर में भगीरथी एक छोटी गुफानुमा ढांचे से आती है। इस बड़ी वर्फानी नदी में पानी 5,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक बेसिन में आता है जिसका मूल पश्चिमी ढलान पर से संतोपंथ समूह की चोटियों से है।




पहले हमारा प्रोग्राम गौमुख तक भी जाने का था पर समय कि कमी के कारण संभव नहीं हो सका क्योंकि हमें रविवार तक दिल्ली पहुंचना जरूरी था. हम दिल्ली में बच्चों की मौसीजी को छोड़ कर आये थे उन्हें सोमवार को सुबह अपनी कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए काठमांडू की फ्लाईट पकडनी थी. हाँ यहाँ पर हम लोग एक बात लिखना ही भूल गए यात्रा की तमाम जानकारी इन्टरनेट आदि पर पड़ने से पता लगा था कि टेलिफ़ोन और मोबाइल सेवाएं अच्छी तरह से काम नहीं करती केवल बी एस एन एल सेवाएं ही ठीक काम करती है. हमारे पास भारत संचार का कोई कनेक्सन नहीं था. इसलिए हम लोग घर पर पिछले दो दिन में बात नहीं कर पाए थे. यहाँ पर एस टी डी बूथ भी ज्यादा नहीं है. हमने हरिद्वार में कहीं पर रिलायंस का विज्ञापन देखा था जिसमे दावा किया था उनका नेटवर्क पुरे उत्तराखंड में है. विशाल के पास  रिलायंस का सिम था उसकी तो यह हालत हुई कि ऋषिकेश  से आगे निकलते ही मोबाइल ने काम  बंद कर दिया बाकी लोगों के पास  वोडाफ़ोन था जिसने उत्तरकाशी तक साथ दिया. जो लोग इस पोस्ट को पढ़ रहें है और उनका इस यात्रा का कोई प्रोग्राम  है उनके लिए सलाह है कि वे भारत संचार का एक  सिम  साथ अवश्य ले जाएँ.

दोपहर दो बजे हमने अपनी वापसी गंगोत्री से कर डाली. हमारा प्रोग्राम उत्तरकाशी में रात्रि विश्राम का था. वापसी में हरसिल के पास एक विउ पॉइंट है. वहां कुछ देर रूककर फोटो बगैरा खींचे . यहाँ हवा इतनी तेज चल रही थी कि खड़ा होना मुश्किल हो गया यहाँ तक कि कैमरा हाथ में संभालना मुश्किल था.


यहाँ से आगे चले तो फिर वही मुसीबत जाम की. इस बार जाम में वाहन रुक रुक कर चल रहे थे कभी लम्बे समय तक खड़े रहते. जाम की वजह से हरसिल में कुछ देर रुकने के प्रोग्राम को टालना पड़ा. हालाँकि एक जगह रास्ते में गाड़ी को छोड़कर हम दूर भागीरथी नदी के तट पर  कुछ देर बैठ कर नदी के पानी का आनंद ले आये. जाम के कारण ऐसा लग नहीं रहा था कि हम शाम तक उत्तरकाशी पहुँच पाएंगे. हुआ भी वही. अँधेरा होने तक हम गंगनानी पहुँच गए. यही पर रात में रुकने का निश्चय किया. यहाँ पर सड़क के नजदीक ऊपर पहाड़ी पर गरम पानी का कुंड है. तय किया कि सुबह वहीं स्नान किया जायेगा. यहाँ पर अच्छी तादाद में होटल है. होटल वाले ने ही बताया कि नवम्बर एवं दिसंबर में यहाँ के होटल विदेशी पर्यटकों से भरे रहते जो यहाँ बर्फ का आनंद लेने आते है. हमने एक होटल में बड़ा सा कमरा ले लिया और वहीँ जम गए. होटल में साज सज्जा भी विदेशी पर्यटकों के अनुसार की गयी है.



गंगनानी 

छठादिन- 26  मई

आज हमारा प्रोग्राम ऋषिकेश या हरिद्वार तक की यात्रा का था जो यहाँ से लगभग 200 किमी है. इसलिए आज थोडा देर से उठे. पास में गरम कुंड जाकर स्नान किया. गरम कुंड का रास्ता होटल के पीछे से था जहाँ से कुंड मात्र 100 मीटर की दूरी पर है. कुंड के पास कई दुकाने पूजा प्रसाद की व् खाने के रेस्तरा है. कुंड में पानी वहुत ही साफ़ था ऐसा लग रहा था कि किसी होटल का स्विमिंग पूल हो. वहां पर कुंड का प्रबंध देखने वाली संस्था के प्रतिनिधि ने बताया कि कुंड कि रोज रात को सफाई की जाती है. संस्था द्वारा किये जा रहे इस कार्य के उन्हें साधुवाद.

गरम कुंड - गंगनानी 
इसके पश्चात् हमने गंगनानी से विदा ली और 12 बजे उत्तरकाशी पहुंचे यहाँ पर हमारी गाड़ी को भी खुराक कि जरूरत थी . अत; गाडी में पेट्रोल भरवाया. यहीं आकर पता चला कि हमारी सरकार ने पेट्रोल के दामों में 7.50 रूपए की वृदि कर दी है. हमें पता भी कैसे चलता हम दो तीन दिनों से संचार माध्यमों से बिलकुल कटे हुए जो थे. उत्तरकाशी से चंबा पहुच कर सोचा कि लगे हाथों टिहरी बाँध का भी चक्कर लगा लिया जाये. बाँध का चक्कर लगा कर वापस चंबा आकर ऋषिकेश की ओर चल दिए और शाम सात बजे तक ऋषिकेश पहुंचे . पहले यहीं रुकने का विचार किया बाद में सोचा कि चलो हरिद्वार में ही रुकेंगे. शनिवार का दिन होने के कारण सारे होटल बुक थे. बड़ी मुश्किल से एक जगह मिली. इस प्रयास में रात के बारह बज गए थे. हम खाना खाकर तुरंत सो गए.




सातवाँदिन- 27 मई



आज हमारा कार्यक्रम दोपहर बाद तक दिल्ली पहुँच जाने का था. चूँकि रात को देर से सोये थे इसलिए देर से जागे. होटल से चेक आउट कर सीधे ही हर की पौरी पहुँच गए.

हर की पैड़ी 

वहां स्नान कर दिल्ली के रवाना हो गए. रास्ते में मुज्ज़फ्फर नगर से पहले खाना खाया. आज कई दिनों के बाद गाड़ी में पांचवा गेअर लगाने का मौका मिला. सरपट दौड़ते हुए दिल्ली अपने घर पहुंचे जहाँ पर बच्चे हमारा इंतजार कर रहे थे. इस तरह से हमारी यात्रा का समापन हुआ. कुल मिलकर इन सात दिनों में हमने 1350 किमी की यात्रा की थी.

1 comment:

  1. a destination where, i always ready to go....................har ki poudi <3

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