Friday 10 August 2012

दो धाम की यात्रा – यमुनोत्री और गंगोत्री


हम लोग काफी दिनों से सोच रहे थे कि यमुनोत्री एवं गंगोत्री की यात्रा की जाये परन्तु बच्चों के एग्जाम की वजह से कार्यक्रम बन नहीं पा रहा था. बच्चो ने ही सुझाव दिया कि क्यों ना आप लोग अकेले ही चले जाओ क्योंकि यह समय चारधाम यात्रा का भी है रास्ते में बहुत सारे साथी मिल जायेंगे. फिर भी हम दोनों पति पत्नी को लग रहा था कि बच्चो को कैसे अकेले दिल्ली में छोड़कर जाएँ. तभी एक विचार दिमाग में आया कि क्यों न बच्चों कि मौसी जो कि बिजनौर में रहती हैं उनको दिल्ली बुला लिया जाये उनका बेटा भी दिल्ली में हमारे ही साथ रहकर पढाई कर रहा हैं.यह आईडिया काम कर गया वह दिल्ली आने को तैयार हो गयीं.
अब आगे का कार्यक्रम तय करना था कि कैसे जाया जाये सोचा कि अपनी मारुती स्विफ्ट से ही चला जाये ताकि रास्ते में आने वाली खूबसूरत जगहों का भी आनंद लिया जा सके. अब हम दो यात्री तो तैयार ही थे हमारी दीदी का पुत्र रंजीत जो दिल्ली में ही रहता था वह भी चलने को तैयार हो गया. अब हम तीन लोग हो गए थे. यात्रा 6 मई 2012 से प्रारंभ करने का विचार था तभी एक और आईडिया आया कि क्यों न दीदी के दूसरे पुत्र एवम उसकी पत्नी को साथ में ले लिया जाये जो कि बरेली (उत्तर प्रदेश) में रहते हैं. वह दोनों लोग भी साथ चलने को तैयार थे परन्तु एक समस्या आ गयी कि विशाल की पत्नी अनु की 8 मई से 21 मई तक स्नातकोत्तर की परीक्षायें थीं. परीक्षा को ध्यान में रखते हुए हम लोगो ने यात्रा कार्यक्रम में तबदीली की और यात्रा 21 मई से ही शुरू करने का कार्यक्रम बनाया. हम लोगों ने भारत के समस्त महत्वपूर्ण स्थानों की यात्रा की हैं कभी अपनी गाड़ी से कभी ड्राईवर को साथ लेकर.  किन्तु यह ऐसी पहली यात्रा होने जा रही थी  जिसमे काफी दूरी तक पहाड़ो पर 11000 फीट की ऊंचाई तक यात्रा होनी थी और मैं अकेला गाडी चलाने वाला था हालाँकि दोनों भांजे गाड़ी चलाना जानते हैं परन्तु पहाड़ो पर गाडी चलाने का अनुभव नहीं है. खैर हिम्मत करके अकेले ही चलाने का मन बना लिया. हमने पूरी यात्रा का कार्यक्रम निम्नानुसार बनाया.
२१ मई – दिल्ली-मेरठ -मुज्ज़फ्फर नगर- रूडकी -हरिद्वार (रात्रि विश्राम हरिद्वार में)
२२ मई – हरिद्वार-ऋषिकेश -नरेन्द्र नगर- चंबा- धरासू – बरकोट (रात्रि विश्राम  बरकोट में)
२३ मई – बरकोट- जानकी चट्टी- यमुनोत्री धाम ( रात्रि विश्राम जानकी चट्टी में)
२४ मई – जानकी चट्टी-बारकोट-धरासू-उत्तरकाशी-गंगनानी-हरसिल (रात्रि विश्राम हरसिल)
२५ मई – हरसिल- गंगोत्री धाम – गंगोत्री धाम- गंगनानी- उत्तरकाशी- धरासू- ऋषिकेश (रात्रि विश्राम ऋषिकेश)
२६ मई – ऋषिकेश – हरिद्वार- रूडकी-मुज्ज़फ्फर नगर – मेरठ – दिल्ली
उपरोक्त तय कार्यक्रमानुसार मैंने विशाल को कह दिया था कि तुम लोग बरेली से सीधे ही बस पकड़कर हरिद्वार पहुँच जाना जहाँ पर हम लोग इंतज़ार करेंगे. अनु का अंतिम एक्साम 21 मई को 12 बजे समाप्त होना था इसलिए विशाल को सुझाव दिया था कि एग्जाम समाप्त होते ही सबसे पहली बाली बस में हरिद्वार के लिए बैठ जाओ ताकि समय पर हरिद्वार पहुँच कर हमें मिल जाये क्योंकि हमारा सायं 7 बजे तक हरिद्वार पहुँच जाने का विचार था. सारी तैयारी 20 मई की रात को कर ली थी इसलिए एग्जाम समाप्त होते ही प्रस्थान करने में कोई समस्या नहीं थी. हम लोग नियत समय पर दिन के एक बजे दिल्ली से प्रस्थान कर गए. रास्ते में मेरठ पहुँचने से पहले सोचा कि विशाल से पता लगाया जाये कि वह लोग निकले हैं कि नहीं, पता चला कि उनका मोबाइल नाट रीचेबल था. समय लगभग 2.30 का था. खैर हमने अपनी यात्रा जारी रखी. जब हम मुज्ज़फ्फर नगर पहुँचने ही वाले थे कि विशाल का फ़ोन आया उसने बताया कि वह लोग घर से दो बजे निकले थे और बस स्टैंड पर खड़े हैं.  हरिद्वार जाने बाली कोई बस उपलब्ध नहीं है. समय लगभग चार बजे का था. अब निश्चित रूप से वह लोग समय पर हरिद्वार पहुँचने में असमर्थ थे क्योंकि कोई भी बस उन्हें हरिद्वार पहुँचाने में लगभग आठ घंटे लगाने वाली थी. हमने उन्हें सुझाव दिया कि वे तुरंत मुरादाबाद जाने बाली बस पकड़ ले वहां पहुंचकर शायद उन्हें हरिद्वार की बस मिल जाये. बरेली से मुरादाबाद के रास्ते दिल्ली जाने वाली बसें बरेली में हर दस मिनट पर मिलती है, इसलिए उन्हें मुरादाबाद की बस मिलने में कोई दिक्कत नहीं हुई. हम लोगों ने जैसे ही मुजफ्फर नगर पार किया कि विशाल का फ़ोन आया कि वे लोग मुरादाबाद की बस में बैठ गए हैं और बस चल पड़ी है. हमने थोड़ी राहत की सांस ली चलो यात्रा तो शुरू हुई. हम लोग लगभग सायं 6.30 बजे हर की पैड़ी पहुँच गए. हर की पैड़ी का मुख्य आकर्षण गंगा जी की आरती आरंभ होने ही वाली थी हमने तुरंत गाड़ी पार्किंग में लगाकर गंगाजी के मंदिर की तरफ दौड़ लगा दी ताकि आरती न निकल जाये. वैसे तो आरती के समय पर हमेशा ही बहुत भीड़ रहती है लेकिन चार धाम यात्रा के चलते भीड़ बहुत ही ज्यादा थी.
आरती दर्शन कर हमने गंगाजी में दीपकों को प्रवाहित किया और मां गंगा से विदा ली. अब हमारा अगला कार्यक्रम ठहरने के लिए होटल की तलाश करना था. हमने पहले से किसी भी होटल में कोई बुकिंग नहीं कराई हुई थी.
हमारे सहयात्री रंजीत को जलेबी खाने का बड़ा ही शौक है, रास्ते में एक जलेबी की दुकान पर जलेबी बन रही थी. रंजीत का मन आया की जलेबी खरीदी जाएँ, जलेबी खरीद कर खाई. जलेबी ऐसी की खाते खाते मुंह दुःख गया. खैर हमारी होटल की तलाश पूरी हुई हमने एक होटल में दो कमरे लेकर अपना डेरा वहीँ जमा दिया और करने लगे इंतज़ार विशाल और अनु का जिन्हें मुरादाबाद से हरिद्वार की बस मिल गयी थी. और वे लगभग 12 बजे तक हरिद्वार पहुँचने वाले थे.
दूसरादिन – 22 मई
आज का हमारा प्रोग्राम शाम तक बरकोट पहुँचने का था. इसके बारे में रात को ही सारे लोगों को बता दिया था. विशाल और अनु रात को 1 बजे हरिद्वार पहुंचे थे. इसलिए हम सभी को सोते सोते रात के दो बज गए थे. लेकिन फिर भी हम सभी 6 बजे सोकर उठ गए और स्नान इत्यादि के पश्चात् आठ बजे तक तैयार हो गए और यात्रा के लिए आगे निकल पड़े. हम लोग तय कार्यक्रमानुसार ऋषिकेश होते हुए चंबा बरकोट तक जाने वाले थे. होटल से निकलने के बाद हमने ऋषिकेश हाईवे पकड़ लिया. चारधाम यात्रा के कारण जगह जगह ट्रेफिक जाम था लेकिन उत्तराखंड पुलिस के जवान मुस्तेदी से ट्रेफिक को क्लीअर कर रहे थे. करीब नौ बजे हम ऋषिकेश मुनि की रेती पहुँच गए. यहाँ गंगा तट पर कुछ समय बिताकर आगे चल दिए . हमें नरेन्द्र नगर के रास्ते चंबा जाना था. ऋषिकेश से एक रास्ता सीधे बद्रीनाथ धाम जाता है जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग 58 कहते हैं. एक रास्ता बायीं ओर है जो नरेन्द्र नगर जाता है यह राष्ट्रीय राजमार्ग 94 है.गाड़ी में हम आगे की यात्रा के बारे में बाते करने में इतने मशगूल थे कि हमें रास्ते का ध्यान ही नहीं रहा और हम सीधे ही   राजमार्ग 58 पर बढ़ गए. लगभग आठ किलोमीटर जाने के बाद हमने माईलस्टोन को देखना शुरू किया तो एहसास हुआ कि हम गलत रास्ते पर आ गयें हैं. तभी मेरी पत्नी अंजना ने बताया कि उन्होंने पीछे कहीं एक बोर्ड देखा था जिस पर नरेन्द्र नगर और चंबा लिखा था. अब क्या करते वापस जाने के सिवा कोई चारा ही नहीं था. गाड़ी में रिवर्स गेअर लगाया और वापस चल दिए. करीब आधा किलोमीटर जाने के बाद दो रास्ते दिखे एक रास्ता ऋषिकेश के लिए और दूसरा रास्ता नरेन्द्र नगर जा रहा था शायद यह ऋषिकेश बाय पास होगा. ऋषिकेश से नरेन्द्र नगर कि दूरी लगभग 20 किलोमीटर  है जिसे हमने 40 मिनट में तय कर लिया रोड बहुत ही शानदार है. इसलिए समय भी कम लगा. नरेन्द्र नगर एक छोटा सा लेकिन ख़ूबसूरत शहर है यहाँ का बाजार बहुत अच्छी तरह से बसाया गया है. नरेन्द्र नगर शहर कि समुद्र तल से ऊँचाई 1326 मीटर है वर्तमान नरेन्द्र नगर 1919 में अस्तित्व में आया जब टिहरी के राजा नरेन्द्र शाह ने अपनी राजधानी को टेहरी से यहाँ स्थानांतरित किया.
नरेन्द्र नगर से चंबा की दूरी 44 किलोमीटर है. हम लोग हरिद्वार से सुबह आठ बजे निकले थे. नाश्ता भी नहीं किया था इसलिए सभी लोगों को भूख लगने लगी थी. लेकिन रास्ते में कोई अच्छा रेस्टोरंट नहीं मिला. एक चाय की दुकान नजर आयी जहाँ पर हमने दिल्ली से अपने साथ लाये नमकीन बिस्किट का सेवन किया और चाय पी. नरेन्द्र नगर से चंबा के रास्ते में हिंदोलाखाल, आगरखाल, फरकोट, आमपाता, जाजल, खहदी, नागनी गाँव आते हैं. दिन के 1.30 बजे हम लोग चंबा पहुँच गए. चंबा नगर उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले की नगर पंचायत है. समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1524 मीटर (5000 फीट)  है. चंबा शहर से उत्तराखंड के तीन मुख्य शहरों टेहरी, ऋषिकेश और मसूरी के लिए सड़कें जाती है.चंबा के पास धनौल्टी,सुरकंडा देवी मंदिर , कानाताल पर्यटन स्थल है, चंबा से 20 किलोमीटर की दूरी पर दुनिया के सबसे ऊँचे बांधो में से एक टेहरी बांध है. यह बांध भागीरथी नदी पर बना है. इसका निर्माण 1978 में प्रारंभ हुआ था तथा इसे 2006 में इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया था. इस बांध की ऊंचाई लगभग 850 फीट  है.
चंबा से धरासू की दूरी 56 किलोमीटर है. चंबा से धरासू के रास्ते में चिन्याली सौर, बरेठी गाँव आते है. चिन्याली सौर में एक रेस्टोरंट में हमने दोपहर का खाना खाया. इसके बाद आगे की ओर चल दिए. धरासू एक छोटी सी जगह है. समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1339 मीटर है. यहाँ पर एक पॉवर स्टेशन भागीरथी नदी पर बना है. धरासू से दो किलोमीटर जाने पर एक बेंड आता है. यहाँ से एक सीधा रास्ता उत्तरकाशी होते हुए गंगोत्री तक जाता है. यहीं से राष्ट्रीय राजमार्ग 108 आरंभ होता है. बांयी ओर जाने वाला रास्ता यमुनोत्री जाता है. हमें इसी रास्ते से जाना था. धरासू से इस रास्ते के चौडीकरण का काम चल रहा है.  इसलिए सड़क की हालत बहुत ही ख़राब है. लगभग सात- आठ किलोमीटर तक रास्ता अत्यंत ही ख़राब है. इसके बाद ब्र्हम्खाल नामक जगह आती है. ब्र्हम्खाल से बरकोट की दूरी 40 किलोमीटर है. रास्ते में गिनोती गाँव आता है. हम लोग शाम को लगभग सात बजे बरकोट पहुँच गए. धरासू से आने वाले रास्ते पर बरकोट से एक किलोमीटर दायीं ओर एक रास्ता यमुनोत्री को जाता है जबकि सीधा वाला रास्ता बरकोट जाता है. यही रास्ता आगे चलकर यमुना ब्रिज होते हुए मसूरी जाता है. जो यात्री देहरादून से आते हैं वे इसी रास्ते से यमुनोत्री जाते हैं. बारकोट पहुँच कर होटल की तलाश शुरू हो गयी. बरकोट यद्दपि बड़ी जगह है लेकिन यहाँ पर बहुत ज्यादा होटल नहीं है. केवल यमुनोत्री जाने वाले रास्ते पर कुछ होटल है. होटल की कमी के कारण होटल तलाशने में थोड़ी दिक्कत हुई परन्तु बाद में एक बड़ा सा कमरा मिल गया. खाने की व्यवस्था होटल में थी. इसलिए खाने की चिंता नहीं थी. बरकोट उत्तरकाशी जिले की नगर पंचायत है. समुद्र तल से बरकोट की ऊंचाई 1220 मीटर है. रात को खाना खाने के बाद हमने सोने की तयारी की क्योंकि सुबह हमने यमुनोत्री की यात्रा करनी थी.
तीसरादिन- 23 मई 
तीसरे दिन हम लोग सुबह 6 बजे सोकर उठ गए अब हमारा अगला लक्ष्य यमुनोत्री पहुँचने का था . बरकोट से जानकी चट्टी की दूरी 41 किलोमीटर है. हमारा कार्य क्रम कुछ इस प्रकार का था की हम लोगों यमुनोत्री दर्शन कर शाम तक पुन बरकोट लौट आये. ताकि अगले दिन हम यहाँ से सीधे गंगोत्री के लिए प्रस्थान कर सके. इन बातो को ध्यान में रखते हुए हमने सुबह सात बजे ही बरकोट से रवानगी कर डाली. बरकोट से निकलते ही रास्ता बहुत ही ख़राब है क्योंकि यहाँ भी सड़क के चौडीकरण का काम चल रहा है. बरकोट से 15 किमी दूर गंगोनी नामक स्थान पर हमने सुबह का नाश्ता कर अपनी यात्रा जारी रखी. बरकोट से जानकी चट्टी का रास्ता बहुत अच्छा नहीं. एक तो रास्ता ख़राब दुसरे चढाई इसलिए समय भी ज्यादा लग रहा था. चारधाम यात्रा के चलते ट्रेफिक भी ज्यादा था. सयाना चट्टी पहुँचने से पहले हमें जाम में भी फँसना पड़ा. लगभग 1 घंटा जाम में हम लोग खड़े रहे. उत्तराखंड पुलिस यहाँ पर भी जाम क्लीअर करने में मुस्तैदी से लगी हुई थी. सयाना चट्टी पार करने के बाद राणा चट्टी नामक जगह आती यहाँ पर भी जाम लगा हुआ था. यहाँ से जैसे तैसे आगे बढे की हनुमान चट्टी में फिर जाम से रूबरू होना पड़ा.   सारे जामों से जूझते हुए लगभग दो बजे के आस पास हम जानकी चट्टी पहुँच गए. जानकी चट्टी यमुनोत्री मंदिर जाने के लिए बसे कैंप है. यहाँ तक बसें, कारें आती है. बरकोट से यमुनोत्री के रास्ते में निम्नलिखित स्थान पड़ते है.
गंगनाणी (15 किमी), कुथूर (3 किमी), पाल गाड (9 किमी), सयानी चट्टी (5 किमी), राणाचट्टी (3 किमी), हुनमानचट्ट (3 किमी), बनास (2 किमी), फूलचट्टी (3 किमी पैदल चढ़ाई), जानकी चट्टी (5 किमी पैदल चढ़ाई), यमुनोत्री


जानकी चट्टी
 जानकी चट्टी

जानकी चट्टी बस अड्डा
जानकी चट्टी पहुँचते ही हमने होटल में शिफ्ट किया और यमुनोत्री मंदिर जाने की तयारी शुरू कर दी. चूँकि हम लोग यहाँ पर तय समय से काफी देर से पहुंचे थे. इसलिए रात को यहाँ रुकने के सिवा और कोई चारा भी नहीं था. हमने जल्दी जल्दी एक ढाबे पर खाना खाया और तीन बजे यमुनोत्री मंदिर के पैदल यात्रा शुरू कर दी. चारधाम यात्रा के कारण तीर्थयात्रियों की भीड़ बहुत थी. 5 किमी की यात्रा करने के पश्चात् शाम 5 बजे हम यमुनोत्री पहुँच गए. पहुँचते ही अचानक ठण्ड का एहसास हुआ. मंदिर के बाहर का फर्श बहुत ही ठंडा था. हमने प्रसाद बगैरा ख़रीदा और मंदिर में दर्शन के लिए चल दिए. हालाँकि रास्ते में यात्रिओं की भीड़ काफी थी परन्तु मंदिर में ज्यादा भीड़ नहीं. इसलिए जल्दी ही दर्शन हो गए.

यमुनोत्री मंदिर

यमुनोत्री मंदिर
यमुनोत्री मंदिर उत्तरकाशी जिले में 3291 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.यह मंदिर माता यमुना को समर्पित है. मंदिर में माता की मूर्ति काले संगमरमर की बनी हुई है. इस मंदिर का निर्माण जयपुर की रानी द्वारा कराया गया था. बर्फ और बाढ़ की बजह से यह मंदिर दो बार नष्ट हो गया था. मंदिर के कपट अक्षय तृतीया को खुलते है एवम यम द्वतीय को बंद होते है.यहाँ मंदिर के अलावा नाले, झरने, तथा गरम जल के स्रोत यात्रियों को आकर्षित करते हैं. मंदिर के समीप ही दिव्य शिला और सूर्य कुंड है. माना जाता है की इस गरम जल में स्नान करने से सभी चर्म रोग दूर हो जाते हैं. यहाँ गरम पानी में आलू एवम चावल पकाए जाते हैं. जिन्हें तीर्थयात्री प्रसाद के रूप में घर ले जाते है.
चार धामों में से एक धाम यमुनोत्री से यमुना का उद्गम मात्र एक किमी की दूरी पर है। यहां बंदरपूंछ चोटी (6315 मी ) के पश्चिमी अंत में फैले यमुनोत्री ग्लेशियर को देखना अत्यंत रोमांचक है। यमुना पावन नदी का स्रोत कालिंदी पर्वत है। तीर्थ स्थल से एक कि. मी. दूर यह स्थल 4421 मी. ऊँचाई पर स्थित है। दुर्गम चढ़ाई होने के कारण श्रद्धालू इस उद्गम स्थल को देखने से वंचित रह जाते हैं।
यमुनोत्री का वास्तविक स्त्रोत बर्फ की जमी हुई एक झील और हिमनद (चंपासर ग्लेसियर) है जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। इस स्थान से लगभग 1 किमी आगे जाना संभव नही है क्योकि यहां मार्ग अत्यधिक दुर्गम है। यही कारण है कि देवी का मंदिर पहाडी के तल पर स्थित है। अत्यधिक संकरी-पतली युमना काजल हिम शीतल है। यमुना के इस जल की परिशुद्धता, निष्कलुशता एवं पवित्रता के कारण भक्तजनों के ह्दय में यमुना के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति उमड पड़ती है। पौराणिक आख्यान के अनुसार असित मुनि की पर्णकुटी इसी स्थान पर थी। देवी यमुना के मंदिर तक चढ़ाई का मार्ग वास्तविक रूप में दुर्गम और रोमांचित करनेवाला है। मार्ग पर अगल-बगल में स्थित गगनचुंबी, मनोहारी नंग-धडंग बर्फीली चोटियां तीर्थयात्रियों को सम्मोहित कर देती हैं। इस दुर्गम चढ़ाई के आस-पास घने जंगलो की हरितिमा मन को मोहने से नही चूकती है।
मंदिर में दर्शन के पश्चात् हमने फोटो खींचे. मंदिर परिसर में लगभग एक घंटा बिताने के बाद हमने वापसी की यात्रा शुरू की और आठ बजे जानकी चट्टी अपने होटल पहुँच गए. सभी लोग काफी थक गए थे इसलिए ढाबे वाले को कहकर होटल के रूम में खाना माँगा लिया और खाना खाकर सो गए इस तरह हमारी एक धाम यमुनोत्री की यात्रा समाप्त हुई. अब दुसरे धाम गंगोत्री की यात्रा प्रारम्भ करनी थी. यह तय किया गया की सुबह जल्दी ही प्रस्थान कर देना है. ताकि रात तक हरसिल पहुँच कर वहां विश्राम किया जा सके.

गंगोत्री यात्रा के बारे में अगले भाग में 
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3 comments:

  1. Nice Description of Yamunotri and Gangotri. Excellent Photographs.

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  2. यात्रा का वृतांत का वणॅन कर हमे भी यात्रा करवा दिया ।

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  3. Sanjana Mishra23 May 2016 at 16:29

    We are planning to visit Chardham in this season.The information given in blog will help us a lot

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