Thursday 21 May 2020

रुद्रनाथ मंदिर

पंचकेदार मंदिरों में से एक रुद्रनाथ मंदिर, उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है. रुद्रनाथ मंदिर भगवान् शिव को समर्पित धार्मिक स्थल हैं. समुद्र तल से 3600 मीटर (11810 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर में भगवान् शिव के एकानन, यानि मुख की पूजा होती है. महाभारत के अनुसार, जब पांडव अपने पापों की क्षमा मांगने के लिए भगवान् शिव के दर्शन के लिए पहाड़ों पर घूम रहे थे तब भगवान् शिव ने उन्हें यहाँ मुख के दर्शन दिए थे. इसके पश्चात पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था. 

रुद्रनाथ मंदिर के कपाट धार्मिक परम्परा के अनुसार मई के महीने में खुलते हैं. तथा नवंबर के महीने में बंद होते है. सर्दियों के मौसम में रुद्रनाथ मंदिर का रास्ता भयंकर बर्फ़बारी के कारण बंद हो जाता है इसलिए सर्दियों का मौसम प्रारम्भ होने पर भगवान् शिव की प्रतीकात्मक मूर्ति गोपेश्वर नामक स्थान पर लायी जाती हैं, जहाँ पर गोपीनाथ मंदिर में शेष छह माह पूजा की जाती है. रुद्रनाथ मंदिर जाने का सबसे उपयुक्त समय मई, जून, अगस्त से अक्टूबर होता है. यदि आप मानसून के मौसम के बाद यहाँ आते हैं. तो रुद्रनाथ के रास्ते में आने वाली विभिन्न प्रकार के फूलों से भरी वाली वादियां आपका मन मोह लेंगी. जो लोग ट्रैकिंग का शौक रखतें हैं उनके लिए भी यही सबसे अच्छा समय होता है. 

रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा गोपेश्वर से शुरू होती है. गोपेश्वर ऋषिकेश से सड़क मार्ग से जुड़ा है. ऋषिकेश से यहाँ की दूरी 212 किमी है. गोपेश्वर के लिए ऋषिकेश से बस/टैक्सी मिल जाती हैं. आप अपने निजी वाहन से भी यहाँ तक आ सकते हैं. गोपेश्वर, चमोली जिले का मुख्यालय है. गोपेश्वर, ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर के लिए मशहूर है. इस मंदिर में मुख्य आकर्षण का केंद्र बारहवीं शताब्दी में निर्मित पांच मीटर ऊँचा ऐतिहासिक लौह त्रिशूल  है. रुद्रनाथ यात्रा के समय यात्री गोपींनाथ मंदिर और लौह त्रिशूल का दर्शन करना नहीं भूलते. रुद्रनाथ यात्रा के लिए आप पहले दिन ऋषिकेश से गोपेश्वर पहुंचकर वहां रात्रि विश्राम करें ,तो उचित रहेगा.  रुद्रनाथ मंदिर तक पहुँचने के लिए तीन मार्ग हैं जिसको नीचे दिए गए मानचित्र से समझा जा सकता है. 
















रुद्रनाथ जाने के लिए एक मार्ग बद्रीनाथ के रास्ते में पड़ने वाले हेलंग नामक स्थान से शुरू होता है. यही रास्ता एक अन्य पंचकेदार मंदिर, कल्पेश्वर के लिए भी जाता है. हेलंग, ऋषिकेश से बद्रीनाथ जाने वाले रास्ते पर चमोली और जोशीमठ के बीच आता है. हेलंग से उर्गम गाँव तक पक्की सड़क है. जहाँ तक टैक्सी/कैब से जा सकते हैं. उर्गम गाँव से एक रास्ता देवग्राम होता हुआ कल्पेश्वर मंदिर तक जाता है, जबकि दूसरा रास्ता उर्गम से पल्ला, किमाणा, कालगोंट और डुमक होते हुए रुद्रनाथ तक जाता है. उर्गम जहाँ तक पक्की सड़क है वहां से रुद्रनाथ की दूरी लगभग 9 किमी है परन्तु ये रास्ता बहुत दुर्गम हैं. इसलिए इस मार्ग से बहुत कम यात्री जाते हैं.

एक अन्य रास्ता, रुद्रनाथ के लिए, गोपेश्वर से 13 किमी दूर बसे मंडल नाम के गाँव से जाता है. इस मार्ग से रुद्रनाथ की दूरी 19 किमी है. यह मार्ग अनुसूया देवी मंदिर, हंसा बुग्याल और पंचगंगा होता हुआ जाता है. इस मार्ग पर खड़ी चढाई है और घने जंगल वाला रास्ता है इसलिए इस मार्ग से कम यात्री ही रुद्रनाथ जाते हैं. रुद्रनाथ जाने के लिए जो मार्ग सबसे ज्यादा प्रचलित है वह गोपेश्वर से 5 किमी दूर सगर गाँव से प्रारंभ होता है. यहाँ आने के लिए गोपेश्वर से जीप/ टैक्सी मिल जाती हैं. यह गाँव पक्के सड़क मार्ग से जुड़ा है. यहाँ  रूकने के लिए होटल/ धर्मशाला/आश्रम आदि भी उपलब्ध हैं. सगर से रुद्रनाथ की दूरी लगभग 21 किमी है. 

सगर से लगभग 4 किमी आगे पहुँचने पर पहाड़ों की चढ़ाई शुरू होती हैं. मौली खरक के बाद उत्तराखंड के प्रसिद्द बुग्यालों की यात्रा शुरू होती हैं. पुंग बुग्याल, लिटी बुग्याल के बाद पनार बुग्याल आता है. यह बुग्याल मानसून के बाद बहुत ही हरे भरे हो जाते हैं. इस बुग्यालों पर स्थानीय लोगों ने छोटे छोटे रहने के लिए आश्रय स्थल बना लिए हैं, जहाँ पर रुद्रनाथ जाने वाले यात्रियों के रूकने और खाने पीने की सीमित व्यवस्था है. बुग्यालों की चढ़ाई के बाद पितृधार नामक स्थान आता है. यहाँ शिव, पार्वती और नारायण मंदिर हैं. यहाँ पर आपको बहुत से पत्थर रखे मिलेंगे. ये पत्थर यात्री अपने पितरों के नाम पर रखतें हैं. इसलिए इस स्थान का नाम पितृधार पड़ा है. रुद्रनाथ मार्ग में चढाई पितृधार में समाप्त हो जाती है. यहाँ से उतराई शुरू हो जाती है. पितृधार के बाद रास्ते में जगह जगह आपको सुन्दर पुष्प दिखने शुरू हो जायेंगें जिनको देखकर आप प्रफुल्लित हो उठेंगे. पितृधार से लगभग 10-11 किमी की यात्रा करने के बाद आप रुद्रनाथ मंदिर के पास पहुँच जायेंगें. रुद्रनाथ मदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है. कहते हैं कि यह मूर्ति अपने आप ही प्रकट हुई है. अब तक इसकी गहराई का पता नहीं चल पाया है. मंदिर के पास वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जानेवाली शेषशायी विष्णु की मूर्ति भी है. मंदिर के एक तरफ पांचों पांडव, कुंती और द्रोपदी के भी मंदिर हैं. मंदिर के पास नारद कुंड है जिसमे यात्री स्नान कर मंदिर में दर्शन के लिए प्रवेश करते हैं. रुद्रनाथ मंदिर के पास की  छटा देखते ही बनती है.  

                    

Sunday 17 May 2020

तुंगनाथ मंदिर



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तुंगनाथ मंदिर, पंचकेदार मंदिर समूह का तीसरा मंदिर है.यह इस समूह का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित मंदिर है.समूचे विश्व में भगवान शिव के जितने भी मंदिर हैं उनमे यह मंदिर सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित है. इस मंदिर को भी पांडवों ने बनाया था. पांडवों को भगवान् शिव ने इस स्थान पर भुजाओं के रूप में दर्शन दिए थे.

तुंगनाथ मंदिर,उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में चोपटा नामक गाँव के पास 3680 मीटर (12073 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित है. तुंगनाथ का मौसम पूरे साल ठंडा रहता है. गर्मी के महीने में औसतन तापमान 16 डिग्री सेल्सियस रहता है जबकि शीत ऋतु बहुत ही ठंडी होती है शीत ऋतु में तापमान शून्य डिग्री से भी नीचे गिर जाता है. यहाँ आने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से अक्टूबर तक होता है. सर्दी के मौसम में भारी बर्फ़बारी के कारण यहाँ आने के रास्ते बंद हो जाते हैं इसके फलस्वरूप तुंगनाथ मंदिर भी सर्दियों में 6 महीने तक बंद कर दिया जाता है. सर्दियों में शिवजी की पूजा मक्कूमठ मंदिर में की जाती है.  

सभी पंचकेदार मंदिरों के पैदल रास्ते की तुलना में तुंगनाथ मंदिर का पैदल रास्ता सबसे छोटा है. उखीमठ - गोपेश्वर मार्ग पर आने वाले चोपटा गाँव से तुंगनाथ की दूरी 3.5 किमी है. चोपटा से तुंगनाथ मंदिर का कच्चा रास्ता लगभग 4-5 घण्टे में पूरा किया जा सकता है. चोपटा गाँव समुद्र तल से 2700 मीटर की ऊंचाई पर बसा है, जबकि तुंगनाथ मंदिर 3680 मीटर की ऊंचाई पर है. इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि रास्ता छोटा होने के बावज़ूद तुंगनाथ पहुँचने के लिए पहाड़ की ख़ड़ी और कठिन चढाई चढ़नी होगी. चोपटा सड़क मार्ग से जुड़ा है. यहाँ तक आप अपने वाहन या टैक्सी/कैब से आ सकते हैं. चोपटा के लिए कोई सीधी सार्वजनिक परिवहन सेवा उपलब्ध नहीं है. यदिआप सार्वजनिक बस सेवा का उपयोग करना चाहते हैं तो ऋषिकेश से उखीमठ, गुप्तकाशी या गोपेश्वर तक बस से आ सकते हैं. इस स्थानों से चोपटा के लिए आसानी से टैक्सी/ कैब मिल जाती है. ऋषिकेश से उखीमठ 182 किमी और गुप्तकाशी 184 किमी  दूरी पर हैं. जबकि चोपटा गुप्तकाशी से 47 और उखीमठ 45 किमी दूर हैं. 

यदि आप गर्मी की ऋतु में चोपटा से तुंगनाथ जाते हैं तो रास्ते में आपको जगह जगह बुरांश के फूल दिखाई देंगे जिनकी खूबसूरती देखकर आप मंत्रमुग्ध हो जायेंगें. इसके अलावा हरे भरे घास के मैदान और ओक के पेड़ आपकी यात्रा को अविस्मरणीय बना देंगें. मोनल और बहुत से अन्य पक्षियों को भी आप तुंगनाथ के पास देख सकते हैं. यदि आप भाग्यशाली हों तो हो सकता है  कि आपको कस्तूरी हिरन भी देखने को मिल जाये. सर्दियों के मौसम में भी ट्रेकर यहाँ तुंगनाथ तक ट्रैकिंग के लिए आते हैं. परन्तु, सर्दी के मौसम में पूरे रास्ते में बर्फ बिछी रहती है इसलिए सर्दी के मौसम में बिना किसी अनुभवी गाईड के साथ आना आपको खतरे में डाल सकता है. 

चंद्रशिला 
तुंगनाथ मंदिर से 1500 मीटर की दूरी पर चंद्रशिला है जो 4200 मीटर की ऊंचाई पर है. यहाँ पर आप डेढ़ से दो घंटे में पहुँच सकते हैं. चंद्रशिला से आप त्रिशूल, नंदादेवी, चौखम्बा पर्वत की हिमाच्छादित चोटियां को देख सकते हैं. कहा जाता है कि इसी स्थान पर रावण के वध के बाद लक्ष्मण ने उपासना की थी. चंद्रशिला पर कोई भी ऐसी जगह नहीं है, जहाँ रूककर आप थोड़ी देर विश्राम कर सकें. चंद्रशिला पर बहुत तेज ठंडी हवाएं चलती रहती है जिसके कारण यहाँ ज्यादा देर ठहरना मुश्किल होता है. इसलिए यात्री कुछ समय ही यहाँ बिताकर वापस नीचे लौट जाते हैं.

चूँकि, तुंगनाथ तक आने और चोपटा वापस जाने के लिए एक दिन ही पर्याप्त होता है इसलिए तुंगनाथ में रूकने के लिए ज्यादा व्यवस्थाएं नहीं है. फिर भी यात्रियों के रूकने के लिए धर्मशाला है जहाँ सीमित सुविधाएँ हैं. यह धर्मशाला स्थानीय पुजारियों द्वारा संचालित की जाती हैं. इसी प्रकार तुंगनाथ में खाने पीने की सीमित सुविधा जैसे चाय, मैगी, रोटी और सब्जी ही उपलब्ध हैं. 

तुंगनाथ में तुंगनाथ मंदिर, चंद्रशिला के अलावा आप अपना समय आस पास के अन्य खूबसूरत जगहों पर बिता सकते हैं. जिनमे कांचुला खरक,कस्तूरी हिरनअभ्यारण्य,रोहिणी बुग्याल और देवरिया ताल प्रमुख हैं. तुंगनाथ मंदिर का आधार कैंप गाँव चोपटा रुद्रप्रयाग का एक बहुत छोटा सा गाँव है परन्तु यह एक अत्यंत खूबसूरत दर्शनीय स्थान हैं. यहाँ पर रूकने के लिए होटल/अतिथि गृह हैं जो बेसिक सुविधाएँ  ही प्रदान करतें हैं. यदि आप प्रकृति प्रेमी हैं तो यहाँ एक दिन जरूर प्रवास करें. इस स्थान को उत्तराखंड का चेरापूंजी भी कहा जाता है. चोपता गाँव एक ऊँचे से स्थान पर बसा गाँव है जहाँ खड़े होकर आप नीचे की ओर खूबसूरत पहाड़ों के बीच की घाटियों का विहंगंम दृश्य देख सकते हैं  जिसे देखकर आप रोमांचित हो उठेंगे.  अगला मंदिर- रुद्रनाथ मंदिर 


Wednesday 13 May 2020

मध्यमहेश्वर मंदिर


मध्यमहेश्वर मंदिर 
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महाभारत के अनुसार मध्यमहेश्वर मंदिर का निर्माण पाण्डवों के भाई भीम ने किया था.मध्यमहेश्वर मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में 3497 मीटर (11473 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित है. इस मंदिर में भगवान् शिव की नाभि (मध्य भाग) की पूजा की जाती है. यह मंदिर पंचकेदार मंदिरों की श्रंखला का दूसरा मंदिर है. यह मान्यता है कि इस मंदिर की यात्रा केदारनाथ, तुंगनाथ और रुद्रनाथ मंदिर के दर्शन के बाद की जानी चाहिए. इस मंदिर में भगवान् शिव की पूजा ग्रीष्म ऋतू में शुरू होती है जो अक्टूबर/नवंबर तक चलती है. नबम्बर महीने के बाद इस मंदिर मे पहुंचने का मार्ग बर्फ गिरने के कारण बंद हो जाता है. इसलिए शरद ऋतू में भगवान् की मूर्ति को उखीमठ ले जाया जाता है. जिससे भगवान की पूजा अर्चना अनवरत चलती रहे. यह मंदिर चौखम्भा, केदारनाथ और नीलकंठ पर्वत की ऊँची चोटियों के बीच हरी भरी घाटी में स्थित है. जिससे इस मंदिर के आस पास की छटा देखते ही बनती है. 

मध्यमहेश्वर मंदिर आने की लिए सबसे उपयुक्त समय अप्रैल से सितम्बर के बीच है. यह मंदिर ऋषिकेश से 227 किमी दूर है. मध्यमहेश्वर मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में है. मध्यमहेश्वर पहुँचने के लिए रांसी गांव से 16 किमी पैदल चलना होता है. रांसी गांव रुद्रप्रयाग जिले का छोटा सा गाँव हैं यहाँ तक पक्की सड़क है. रांसी गाँव तक आप अपने वाहन या टैक्सी से आ सकते हैं. ऋषिकेश से रांसी गाँव के लिए सीधी बस नहीं मिलती है. हालाँकि, ऋषिकेश से रांसी के लिए टैक्सी/कैब मिल जाती हैं. यदि आप बस से आना चाहते हैं तो ऋषिकेश से उखीमठ की बस ले सकते हैं. उखीमठ के लिए ऋषिकेश से कई बसें चलती है. शीतकाल में मध्यमहेश्वर की पूजा यहीं उखीमठ के ओम्कारेश्वर मंदिर में ही की जाती है. उखीमठ, गुप्तकाशी और गोपेश्वर को जोड़ने वाले मार्ग पर स्थित है.उखीमठ से आप टैक्सी/कैब द्वारा रांसी गांव पहुँच सकते है. रांसी गाँव, उखीमठ से 20 किमी की दूरी पर है, जबकि उखीमठ ऋषिकेश से 182 किमी दूर है. 

रांसी एक छोटा सा पहाड़ी गांव है जहाँ रूकने की व्यवस्था है. रांसी से मध्यमहेश्वर का ट्रेक प्रारम्भ होता है. रांसी से 6 किमी आगे गौंधर गांव आता है. यहाँ भी रूकने के लिए लॉज इत्यादि है. यह लॉज अच्छी सुविधा संपन्न नहीं  हैं, बस यह समझ लीजिये कि रात बिताने के लिए एक छोटी सी जगह आपको मिल गयी है. गौंधर गांव से आगे जाने पर दो किमी बाद बनतोली गाँव आता है. यहाँ पर मध्यमहेश्वर गंगा और मार्तण्डेय गंगा नदियों का मिलन होता है. इस गाँव में भी रूकने, खाने पीने के लिए आपको छोटे छोटे ठिकाने मिल जायेंगें. यदि आप मध्यमहेश्वर का ट्रेक एक दिन में पूरा नहीं करना चाहते हैं तो रात में रूकने के लिए बनतोली अच्छी जगह है. क्योंकि,यह मध्यमहेश्वर ट्रेक के लगभग बीच में स्थित है. यहाँ पर रूककर आप यहाँ प्राकृतिक सुंदरता को निहार सकते हैं. बनतोली तक रास्ता काफी अच्छा और आसान है. बनतोली के बाद रास्ता कठिन चढाई वाला है. 

बनतोली से आगे प्रत्येक एक/डेढ़ किमी पर क्रमश: आपको खटारा, नानू चट्टी, मैखंबा चट्टी और कुनचट्टी गांव मिलेंगें. ये छोटे छोटे गांव है जिनकी जनसँख्या बमुश्किल 30-40 होगी. यहाँ पर रहने वाले ग्रामवासी बहुत ही सीधे साधे है. इन्ही ग्रामवासियों ने अपने घरों में छोटे छोटे भोजनालय या रूकने के लिए स्थान बना लिए है. इन ग्रामवासियों के आमदनी का एक बड़ा हिस्सा इन्ही भोजनालयों/विश्राम गृह के चलाने से आता है. इनका यह व्यवसाय बहुत कुछ मध्यमहेश्वर की यात्रा करने वाले श्रदालुओं पर निर्भर करता है. कुनचट्टी गाँव से आगे बढ़ने पर तीन किमी बाद आपको एक बड़े हरे भरे स्थान पर एक मंदिर नजर आएगा यही मध्यमहेश्वर मंदिर है. मध्यमहेश्वर में रात को रूकने के लिए धर्मशाला/ यात्री निवास हैं. मंदिर के आस पास बहुत खुली जगह है. यहाँ पर रात में रूकने के लिए आप अपने टेंट लगा सकते हैं. आस पास के भोजनालयों में आप स्थानीय गढ़वाली खाने का मजा ले सकते हैं. मध्यमहेश्वर मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है और रात्रि 9 बजे बंद होता है. आप अपनी सुविधानुसार मंदिर में भगवान् के दर्शन कर सकते हैं.

झील में चौखम्भा पर्वत का प्रतिबिम्ब 
मध्यमहेश्वर से 1500 मीटर की दूरी पर ऊपर की तरफ पहुँचने पर आप अपने को घास के एक बड़े मैदान में पायेंगें. उत्तराखंड में घास के इन बड़े बड़े मैदानों को बुग्याल कहते है. इस बुग्याल में एक छोटा सा मंदिर है, जिसे बूढ़ा मध्यमहेश्वर  कहतें हैं. इसी घास के मैदान में एक ओर झील है तथा पीछे की तरफ बर्फ से लदा हुआ विशालकाय चौखम्बा पर्वत है. बूढ़ा मध्यमहेश्वर मंदिर एक छोटा सा मंदिर है. यहाँ कोई पुजारी नहीं होता है. बस आपको पूजा अर्चना के लिए झील से पानी लेकर शिवलिंग पर चढ़ाना होता है. जब झील में पानी अच्छी मात्रा में जमा होता है तो इसमें चौखम्भा पर्वत का प्रतिबिम्ब बहुत ही सुन्दर दिखाई देता है. मध्यमहेश्वर की यात्रा में सबसे सुखद अनुभव तब होता है जब आप झील के पास इस बुग्याल पर खड़े होकर चौखम्भा पर्वत, केदार पर्वत के अलौकिक दर्शन का आनंद ले रहे होते हैं. यदि आप अच्छे ट्रेकर हैं तो मध्यमहेश्वर से कंचनी ताल के लिए भी ट्रैकिंग कर सकते हैं. यह ट्रेक थोड़ा मुश्किल हैं. कंचनी ताल 4200 मीटर की ऊंचाई पर मध्यमहेश्वर से 16 किमी दूर है. इसको ट्रेक को पूरा करने के लिए 8 घंटे लगते हैं. 
अगला मंदिर - तुंगनाथ मंदिर 


Tuesday 12 May 2020

केदारनाथ मंदिर

महाभारत के अनुसार केदारनाथ मंदिर पांडवों ने बनाया था. आठवीं शताब्दी में जब आदि गुरु शंकराचार्य अपने चार शिष्यों के साथ यहाँ आये तो उन्होंने इस मंदिर का जीर्णोध्दार किया। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में 3583 मीटर (11755 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित है. यह मंदिर पंचकेदार मंदिरों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इस मंदिर में शंक्वाकार आकार (कोनिकल शेप) का शिवलिंग स्थापित है जिसे भगवान् शिव की पीठ (हंप) माना जाता है. केदारनाथ मंदिर चोराबारी ग्लेशियर के निकट स्थित है. चोराबारी ग्लेशियर से मन्दाकिनी नदी का उद्गम होता है. केदारनाथ मंदिर के पीछे की तरफ केदारनाथ पर्वत है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 6940 मीटर (22769 फ़ीट) है.

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सर्दियों के मौसम में भीषण सर्दी होने के कारण केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद रहतें हैं. अप्रैल महीने के अंत से नवंबर महीने के प्रारम्भ तक मंदिर के कपाट खुलते हैं. नवंबर महीने के बाद बर्फ गिरने की वजह से केदारनाथ जाने के रास्ते बंद हो जाते है. यहां का अधिकतम तापमान जून के महीने में 17 डिग्री तक और न्यूनतम तापमान जनवरी में माइनस 10  डिग्री तक रहता है.
केदारनाथ मंदिर जाने के लिए निकटतम स्थान गौरीकुंड है. जहां तक आप वाहन से आ सकते है. यदि आप अपने निजी वाहन या बस/टैक्सी से यहाँ आते है तो आपको गौरीकुंड से 5 किमी पहले सोनप्रयाग तक आने की अनुमति है. सोनप्रयाग के आगे आप अपना निजी वाहन नहीं ले जा सकते और न ही सरकारी अथवा प्राइवेट बसों को यहाँ से आगे जाने की अनुमति है.

सोनप्रयाग में रुकने के लिए बहुत से होटल/ अतिथि गृह/ धर्मशालाएं है. वाहन पार्किंग की सुविधा यहाँ उपलब्ध है.सोनप्रयाग से गौरीकुंड जाने के लिए आपको शेयर्ड जीप से जाना होगा. जिसका किराया 20 रुपये प्रति व्यक्ति (2019 का किराया) है. गौरीकुंड में भी रुकने की व्यवस्था है. गौरीकुंड से केदारनाथ की 14 किमी की यात्रा आपको पैदल ही करनी होती है. यात्रा के लिए घोड़े (पोनी) भी उपलब्ध रहते हैं. जिनका किराया यात्रियों की भीड़ पर निर्भर रहता है. औसतन 3 से 4 हजार रुपये में घोडा मिल जाता है. बच्चो को ले जाने के लिए पिट्ठू भी यहाँ अपनी सेवाएं देते हैं. जो यात्री बुजुर्ग हैं और घोड़े से यात्रा नहीं करना चाहते हैं उनके लिए पालकी की व्यवस्था है. जिसका किराया औसतन 12-15 हजार रुपये होता है. आप किसी भी मौसम में जाएँ बारिश की यहाँ पूरी सम्भावना रहती है. इसलिए आवश्यक है कि आप रेन कोट साथ ले जाएँ. केदारनाथ धाम में मई/जून के मौसम में भी तापमान बहुत नीचे रहता है इसलिए गरम कपडे साथ ले जाना न भूलें. याद रखे कि गौरीकुंड 6500 फ़ीट की ऊंचाई पर है और 14 किमी बाद केदारनाथ में आप 11755 फ़ीट की ऊंचाई पर होंगे इसलिए मानसिक और शारीरिक रूप से अपने को तैयार रखें. केदारनाथ में ऑक्सीजन का लेवल भी कम रहता है इसलिए बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें. गौरीकुंड में पोर्टेबल ऑक्सीजन सिलिंडर मिल जाते हैं.

उत्तराखंड सरकार के निर्देशों के अनुसार केदारनाथ यात्रा करने के लिए प्रत्येक यात्री को बायो मेट्रिक रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है. यह रजिस्ट्रेशन आप उत्तराखंड सरकार की वेबसाइट पर ऑनलाइन भी कर सकतें हैं. यदि आप इसे ऑनलाइन कराना भूल गए हैं तो इसकी सुविधा सोनप्रयाग में भी उपलब्ध है. चारधाम यात्रा के पीक समय यानि मई, जून में यात्रियों की भारी भीड़ होती है. इसलिए बेहतर यही होगा कि रजिस्ट्रेशन आप ऑनलाइन ही करा लें ताकि समय की बचत हो सके. रजिस्ट्रेशन के लिए आपको सिर्फ आपके आधार कार्ड की जरुरत होगी.

अपनी केदारनाथ यात्रा का कार्यक्रम निम्नलिखित प्रकार से बना सकते हैं. यह कार्यक्रम केवल आपकी जानकारी के लिए है. इसमें आप अपनी आवश्यकता अनुसार एवं समय को देखते हुए फेरबदल कर सकते हैं. इस कार्यक्रम को ऋषिकेश एंट्री पॉइंट मानकर बनाया गया है. ऋषिकेश, दिल्ली से सड़क मार्ग से 245 किमी की दूरी पर है. यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट में हैं जो ऋषिकेश से 21 किमी दूर है.

पहला दिन-
ऋषिकेश से सोनप्रयाग या गौरीकुंड (दूरी 210 किमी, सड़क मार्ग से समय लगभग 8 घंटा)
यात्रा  मार्ग (ऋषिकेश-देवप्रयाग-श्रीनगर-रुद्रप्रयाग- अगस्तमुनि-गुप्तकाशी-सोनप्रयाग)
सोनप्रयाग पहुँच कर अपना बायो मेट्रिक रजिस्ट्रेशन करा लें यदि ऑनलाइन न कराया हो. यहाँ तक आप अपने निजी वाहन से आ सकते हैं. ऋषिकेश से बस या प्राइवेट टैक्सी भी मिल जाती हैं. सोनप्रयाग के लिए ऋषिकेश से बसे कम मिलती हैं. यदि बस न मिले तो ऋषिकेश से गुप्तकाशी तक बस द्वारा आया जा सकता है. गुप्तकाशी से
सोनप्रयाग के प्राइवेट वाहन मिल जाते हैं. सोनप्रयाग पहुँच कर केदारनाथ यात्रा के लिए अपना बायो मेट्रिक रजिस्ट्रेशन करा लें यदि ऑनलाइन न कराया हो. रात्रि विश्राम यहीं सोनप्रयाग में करें. यदि आपके पास अपना वाहन और समय भी है तो मेरी यह सलाह रहेगी  कि आप सोनप्रयाग से 13 किमी दूर त्रियुगीनारायण में रात्रि विश्राम करें. चारधाम यात्रा के समय सोनप्रयाग में बहुत भीड़ होती है इसलिए होटल/ रेस्ट हाउस काफी महंगे हो जाते हैं.

दूसरा दिन-
सोनप्रयाग- गौरीकुंड- केदारनाथ (21 किमी (16 किमी ट्रेक) - 6-7 घंटे
इस दिन अपनी यात्रा सुबह जल्दी शुरू कर सोनप्रयाग से टैक्सी द्वारा गौरीकुंड पहुंचे जहाँ से केदारनाथ  मंदिर की पैदल यात्रा प्रारम्भ होती है. यदि आप अपनी यात्रा सुबह 7 बजे शुरू करते हैं तो उम्मीद हैं कि आप शाम तीन या चार बजे तक केदारनाथ पहुँच जायेंगें.  रास्ता कठिन और खड़ी चढाई वाला है इसलिए हो सकता है कि समय अनुमान से ज्यादा लगे. यदि समय से पहुँच जाएँ और आपकी हिम्मत ने जवाब नहीं दिया है तो बाबा केदार के दर्शन कर लें, नहीं तो होटल/धर्मशाला में आज विश्राम करें. केदारनाथ मंदिर के खुलने का समय प्रातः 5 बजे हैं परन्तु जब तक सभी श्रदालुओं को बाबा केदार के दर्शन नहीं होते मंदिर बंद नहीं होता है. यात्रा के पीक समय यानि मई जून में श्रदालुओं को अच्छी खासी तादाद रहती है अतः. रूकने की व्यवस्था केदारनाथ पहुँचने से पहले कर लें तो बेहतर रहेगा. यहाँ होटल/धर्मशाला/अतिथि गृह है जहाँ रुकने एवं खाने की व्यवस्था है. केदारनाथ धाम में गढ़वाल मंडल विकास निगम का अतिथि गृह भी है.

तीसरा दिन -
केदारनाथ- गौरीकुंड- सोनप्रयाग (21 किमी (16 किमी ट्रेक)- 6 घण्टे
आज प्रातःकाल में बाबा केदार के दर्शन कर आप वापसी की यात्रा शुरू कर सकते हैं. दर्शन की प्रक्रिया में आपको 2 -3 घण्टे लग सकते हैं. समय हो तो केदारनाथ धाम में विचरण कर सकते हैं और भैरों बाबा के भी दर्शन कर सकते हैं जिनका मंदिर, केदारनाथ मंदिर से 600 मीटर एक पहाड़ी पर है. सोनप्रयाग पहुँच कर रात्रि विश्राम करें. अगर, शाम को तीन बजे तक आप सोनप्रयाग पहुँच जाते है तो यहाँ से गुप्तकाशी जाकर रात्रि विश्राम कर सकते हैं. इससे आप अगले दिन की यात्रा के दो घण्टे बचा सकते हैं.

चौथा दिन-
गुप्तकाशी- अगस्तमुनि- रुद्रप्रयाग-श्रीनगर-देवप्रयाग-ऋषिकेश (184 किमी, 7  घंटे.)

यदि 16 किमी की केदारनाथ मंदिर की पैदल यात्रा आपके लिए मुश्किल है और समय भी आप के पास नहीं है, तो आप फाटा नामक स्थान तक पहुँच कर होटल में रुक सकते हैं. फाटा ऋषिकेश से 195 किमी की दूरी पर है. फाटा से आपको  केदारनाथ मंदिर के लिए हेलीकॉप्टर सेवा मिल जाएगी. इस सेवा के लिए आने जाने का किराया लगभग 7000 रुपये (वर्ष 2019 में) है. केदारनाथ धाम में हेलिपैड से मंदिर की दूरी मात्रा 500 मीटर है. इस सेवा के उपयोग से आपके समय की बचत होगी. यदि आपका बजट कम है तो हेलीकाप्टर सेवा आप सेरसी नामक स्थान से भी ले सकते हैं. सेरसी फाटा से 8 किमी दूर है. यहाँ से केदारनाथ जाने के लिए हेलीकाप्टर सेवा का किराया सिर्फ जाने का 2500 रुपये है. वापसी में आप केदारनाथ से पैदल भी आ सकते हैं क्योंकि पहाड़ चढ़ने की तुलना में पहाड़ से उतरना आसान होता है.  आगे पढ़िए मध्यमहेश्वर मंदिर 

Monday 11 May 2020

पंचकेदार मंदिर

हिन्दू धर्म में मुख्यतय: चार संप्रदाय हैं, वैष्णव, शैव, शक्ति और स्मार्त. शैव संप्रदाय के लोग भगवान् शिव की उपासना करते हैं.पंचकेदार मंदिर वास्तव में शैव सम्प्रदाय द्वारा शिव भगवान् को समर्पित पांच हिन्दू मंदिरों के समूह को कहा जाता है. ये मंदिर उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल इलाके में स्थित हैं. पंचकेदार मंदिरों के बारे में कई लोक कथाएं कही जाती हैं. इनमे से एक के अनुसार, पंचकेदार मन्दिर प्रसिद्द ग्रन्थ महाभारत के नायक पांडवों से सम्बंधित है. महाभारत के अनुसारकुरुक्षेत्र के युद्ध में पांडवों ने अपने कौरव भाइयों को मार दिया था. युद्ध के बाद पांडवों को बहुत दुःख हुआ. गोत्र हत्या और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने अपना राजकाज त्याग दिया और आशीर्वाद पाने के लिए वे भगवान् शिव की तलाश में निकल पड़े. काशी (वाराणसी) भगवान् शिव की प्रिय नगरी थी. इसलिए पांडव सर्वप्रथम काशी  पहुंचे. परन्तु, भगवान् शिव वहां उन्हें नहीं मिले. कुरुक्षेत्र के युद्ध में हुई हत्याओं से और युद्ध में किये छल और प्रपंच के कारण शिव पांडवों से नाराज थे और उनकी प्रार्थना पर विचार नहीं करना चाहते थे. इसलिए पांडवों से बचने के लिए भगवान् शिव ने भैंसे का वेश धारण कर लिया और गढ़वाल की पहाड़ियों में भूमिगत हो गए. काशी में भगवान् शिव को पाकर पांडव भी गढ़वाल की पहाड़ियों में उन्हें ढूंढ़ने के लिए निकल पड़े. लोककथा के अनुसार गुप्तकाशी (वर्तमान में ये जगह केदारनाथ मंदिर से 45 किमी दूर है) में भीम ने देखा कि एक भैंसा घास चार रहा है. भीम ने भैंसे के रूप में भगवान शिव को पहचान लिया. चूँकि, भगवान् शिव यहाँ गुप्तकाशी में भूमिगत हुए थे इसलिए इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ा. 
  
भगवान् शिव को उनके भैंसे के रूप में पहिचानने के तुरंत पश्चात भीम ने भैंसे की पिछली टाँगे और पूँछ पकड़ ली. परन्तु,भगवान् शिव फिर से भूमिगत हो गए और भैंसे के पांच भागों (फाइव पार्ट्स) के रूप में जगह जगह पुनः प्रकट हुए. पीठ (हंप) केदारनाथ, भुजाएं तुंगनाथ, नाभि और पेट मध्यमहेश्वर, चेहरा रुद्रनाथ और सिर (जटायें) कल्पेश्वर में पाया गया. इन पांच रूपों में भगवान् शिव को पाकर पांडव बहुत खुश हुए और इन्ही स्थानों पर पांडवों ने भगवान् शिव के मंदिर बनाकर शिवजी की उपासना की. इन्ही पांच मंदिरों को संयुक्त रूप से पंचकेदार कहा जाता है. इन पांच मंदिरों की यात्रा करने को ही पंचकेदार की यात्रा कहा जाता है. यह मंदिर निम्नलिखित नामों से जाने जाते हैं. 

1. केदारनाथ मंदिर 2. मध्यमहेश्वर मंदिर 3. तुंगनाथ मंदिर 4. रुद्रनाथ मंदिर 5. कल्पेश्वर मंदिर

पंचकेदार मंदिरों की यात्रा करने के लिए पैदल ही जाना पड़ता है. यह पैदल मार्ग निकटतम सड़क मार्ग से जुड़े हैं जहाँ तक वाहन से यात्रा की जा सकती है. यह सभी निकटतम सड़क मार्ग विभिन्न दिशाओं में विभिन्न यात्रा ाम्रग पर है. इसको दिए गए मानचित्र के द्वारा आसानी से समझा जा सकता है.
पंचकेदार की यात्रा करने के लिए आपको सम्पूर्ण और विस्तृत जानकारी होनी चाहिए. पूरी पंचकेदार यात्रा के लिए कम से कम 15 दिन आपके पास होने चाहिए. यदि आपके पास समय का अभाव है तो यह यात्रा टुकड़ो में भी की जा सकती है. सभी पंचकेदार मंदिर, कल्पेश्वर मंदिर को छोड़कर, पूरे साल में केवल 6 महीने ही खुले रहते है. सामान्यत: ये मंदिर अप्रैल अंत /मध्य मई के महीने से दीपावली तक खुले रहते हैं. शेष समय में मंदिरों के कपाट बंद रहते है. शीत ऋतु में भगवान शिव की मूर्ति केदारनाथ से उखीमठ के ओम्कारेश्वर मंदिर लायी जाती है.जहाँ भगवान शिव की पूजा शेष 6 महीनों तक की जाती है. इसी प्रकार तुंगनाथ मंदिर की मूर्ति की पूजा मक्कूमठ में की जाती है. रुद्रनाथ की प्रतीकात्मक मूर्ति की गोपेश्वर और मध्यमहेश्वर की मूर्ति की पूजा उखीमठ में की जाती है. पंचकेदार की यात्रा के लिए मई, जून, सितम्बर और अक्टूबर महीने सबसे उपयुक्त रहते हैं. जुलाई और अगस्त महीनों में मानसून की वर्षा होने के कारण रास्ता जोखिम भरा हो जाता है. क्योंकि, इन दिनों भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता हैयदि आप एक अच्छे ट्रेकर हैं तो इन स्थानों की यात्रा सर्दियों के मौसम में सभी तैयारियों जैसे उचित वस्त्र, खाने पीने की वस्तुएं, रूकने के इंतजाम के साथ कर सकते हैं. परन्तु, मंदिरों के कपाट आपको बंद मिलेंगें. 

पंचकेदार की यात्रा करने के किये आप अपनी गाड़ी या टैक्सी/बस से निकटतम सड़क मार्ग तक सकते हैं. शेष मार्ग आपको पैदल चल कर ही पूरा करना होगा. पंचकेदार मंदिरों की यात्रा के लिए ऋषिकेश एंट्री पॉइंट है. ऋषिकेश सड़क मार्ग द्वारा दिल्ली से जुड़ा हुआ है. ऋषिकेश की दिल्ली से दूरी 225 किमी है. ऋषिकेश का निकटतम हवाई अड्डा जोली ग्रांट में है जो ऋषिकेश से 21 किमी पर स्थित है.

इन सभी मन्दिरों  की जानकारी तथा इनकी यात्रा कैसे की जाये, यह सब अगली पोस्ट में. केदारनाथ मंदिर