Wednesday 13 May 2020

मध्यमहेश्वर मंदिर


मध्यमहेश्वर मंदिर 
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महाभारत के अनुसार मध्यमहेश्वर मंदिर का निर्माण पाण्डवों के भाई भीम ने किया था.मध्यमहेश्वर मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में 3497 मीटर (11473 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित है. इस मंदिर में भगवान् शिव की नाभि (मध्य भाग) की पूजा की जाती है. यह मंदिर पंचकेदार मंदिरों की श्रंखला का दूसरा मंदिर है. यह मान्यता है कि इस मंदिर की यात्रा केदारनाथ, तुंगनाथ और रुद्रनाथ मंदिर के दर्शन के बाद की जानी चाहिए. इस मंदिर में भगवान् शिव की पूजा ग्रीष्म ऋतू में शुरू होती है जो अक्टूबर/नवंबर तक चलती है. नबम्बर महीने के बाद इस मंदिर मे पहुंचने का मार्ग बर्फ गिरने के कारण बंद हो जाता है. इसलिए शरद ऋतू में भगवान् की मूर्ति को उखीमठ ले जाया जाता है. जिससे भगवान की पूजा अर्चना अनवरत चलती रहे. यह मंदिर चौखम्भा, केदारनाथ और नीलकंठ पर्वत की ऊँची चोटियों के बीच हरी भरी घाटी में स्थित है. जिससे इस मंदिर के आस पास की छटा देखते ही बनती है. 

मध्यमहेश्वर मंदिर आने की लिए सबसे उपयुक्त समय अप्रैल से सितम्बर के बीच है. यह मंदिर ऋषिकेश से 227 किमी दूर है. मध्यमहेश्वर मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में है. मध्यमहेश्वर पहुँचने के लिए रांसी गांव से 16 किमी पैदल चलना होता है. रांसी गांव रुद्रप्रयाग जिले का छोटा सा गाँव हैं यहाँ तक पक्की सड़क है. रांसी गाँव तक आप अपने वाहन या टैक्सी से आ सकते हैं. ऋषिकेश से रांसी गाँव के लिए सीधी बस नहीं मिलती है. हालाँकि, ऋषिकेश से रांसी के लिए टैक्सी/कैब मिल जाती हैं. यदि आप बस से आना चाहते हैं तो ऋषिकेश से उखीमठ की बस ले सकते हैं. उखीमठ के लिए ऋषिकेश से कई बसें चलती है. शीतकाल में मध्यमहेश्वर की पूजा यहीं उखीमठ के ओम्कारेश्वर मंदिर में ही की जाती है. उखीमठ, गुप्तकाशी और गोपेश्वर को जोड़ने वाले मार्ग पर स्थित है.उखीमठ से आप टैक्सी/कैब द्वारा रांसी गांव पहुँच सकते है. रांसी गाँव, उखीमठ से 20 किमी की दूरी पर है, जबकि उखीमठ ऋषिकेश से 182 किमी दूर है. 

रांसी एक छोटा सा पहाड़ी गांव है जहाँ रूकने की व्यवस्था है. रांसी से मध्यमहेश्वर का ट्रेक प्रारम्भ होता है. रांसी से 6 किमी आगे गौंधर गांव आता है. यहाँ भी रूकने के लिए लॉज इत्यादि है. यह लॉज अच्छी सुविधा संपन्न नहीं  हैं, बस यह समझ लीजिये कि रात बिताने के लिए एक छोटी सी जगह आपको मिल गयी है. गौंधर गांव से आगे जाने पर दो किमी बाद बनतोली गाँव आता है. यहाँ पर मध्यमहेश्वर गंगा और मार्तण्डेय गंगा नदियों का मिलन होता है. इस गाँव में भी रूकने, खाने पीने के लिए आपको छोटे छोटे ठिकाने मिल जायेंगें. यदि आप मध्यमहेश्वर का ट्रेक एक दिन में पूरा नहीं करना चाहते हैं तो रात में रूकने के लिए बनतोली अच्छी जगह है. क्योंकि,यह मध्यमहेश्वर ट्रेक के लगभग बीच में स्थित है. यहाँ पर रूककर आप यहाँ प्राकृतिक सुंदरता को निहार सकते हैं. बनतोली तक रास्ता काफी अच्छा और आसान है. बनतोली के बाद रास्ता कठिन चढाई वाला है. 

बनतोली से आगे प्रत्येक एक/डेढ़ किमी पर क्रमश: आपको खटारा, नानू चट्टी, मैखंबा चट्टी और कुनचट्टी गांव मिलेंगें. ये छोटे छोटे गांव है जिनकी जनसँख्या बमुश्किल 30-40 होगी. यहाँ पर रहने वाले ग्रामवासी बहुत ही सीधे साधे है. इन्ही ग्रामवासियों ने अपने घरों में छोटे छोटे भोजनालय या रूकने के लिए स्थान बना लिए है. इन ग्रामवासियों के आमदनी का एक बड़ा हिस्सा इन्ही भोजनालयों/विश्राम गृह के चलाने से आता है. इनका यह व्यवसाय बहुत कुछ मध्यमहेश्वर की यात्रा करने वाले श्रदालुओं पर निर्भर करता है. कुनचट्टी गाँव से आगे बढ़ने पर तीन किमी बाद आपको एक बड़े हरे भरे स्थान पर एक मंदिर नजर आएगा यही मध्यमहेश्वर मंदिर है. मध्यमहेश्वर में रात को रूकने के लिए धर्मशाला/ यात्री निवास हैं. मंदिर के आस पास बहुत खुली जगह है. यहाँ पर रात में रूकने के लिए आप अपने टेंट लगा सकते हैं. आस पास के भोजनालयों में आप स्थानीय गढ़वाली खाने का मजा ले सकते हैं. मध्यमहेश्वर मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है और रात्रि 9 बजे बंद होता है. आप अपनी सुविधानुसार मंदिर में भगवान् के दर्शन कर सकते हैं.

झील में चौखम्भा पर्वत का प्रतिबिम्ब 
मध्यमहेश्वर से 1500 मीटर की दूरी पर ऊपर की तरफ पहुँचने पर आप अपने को घास के एक बड़े मैदान में पायेंगें. उत्तराखंड में घास के इन बड़े बड़े मैदानों को बुग्याल कहते है. इस बुग्याल में एक छोटा सा मंदिर है, जिसे बूढ़ा मध्यमहेश्वर  कहतें हैं. इसी घास के मैदान में एक ओर झील है तथा पीछे की तरफ बर्फ से लदा हुआ विशालकाय चौखम्बा पर्वत है. बूढ़ा मध्यमहेश्वर मंदिर एक छोटा सा मंदिर है. यहाँ कोई पुजारी नहीं होता है. बस आपको पूजा अर्चना के लिए झील से पानी लेकर शिवलिंग पर चढ़ाना होता है. जब झील में पानी अच्छी मात्रा में जमा होता है तो इसमें चौखम्भा पर्वत का प्रतिबिम्ब बहुत ही सुन्दर दिखाई देता है. मध्यमहेश्वर की यात्रा में सबसे सुखद अनुभव तब होता है जब आप झील के पास इस बुग्याल पर खड़े होकर चौखम्भा पर्वत, केदार पर्वत के अलौकिक दर्शन का आनंद ले रहे होते हैं. यदि आप अच्छे ट्रेकर हैं तो मध्यमहेश्वर से कंचनी ताल के लिए भी ट्रैकिंग कर सकते हैं. यह ट्रेक थोड़ा मुश्किल हैं. कंचनी ताल 4200 मीटर की ऊंचाई पर मध्यमहेश्वर से 16 किमी दूर है. इसको ट्रेक को पूरा करने के लिए 8 घंटे लगते हैं. 
अगला मंदिर - तुंगनाथ मंदिर 


1 comment:

  1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर जी 🙏🙏🙏

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