Monday 11 May 2020

पंचकेदार मंदिर

हिन्दू धर्म में मुख्यतय: चार संप्रदाय हैं, वैष्णव, शैव, शक्ति और स्मार्त. शैव संप्रदाय के लोग भगवान् शिव की उपासना करते हैं.पंचकेदार मंदिर वास्तव में शैव सम्प्रदाय द्वारा शिव भगवान् को समर्पित पांच हिन्दू मंदिरों के समूह को कहा जाता है. ये मंदिर उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल इलाके में स्थित हैं. पंचकेदार मंदिरों के बारे में कई लोक कथाएं कही जाती हैं. इनमे से एक के अनुसार, पंचकेदार मन्दिर प्रसिद्द ग्रन्थ महाभारत के नायक पांडवों से सम्बंधित है. महाभारत के अनुसारकुरुक्षेत्र के युद्ध में पांडवों ने अपने कौरव भाइयों को मार दिया था. युद्ध के बाद पांडवों को बहुत दुःख हुआ. गोत्र हत्या और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने अपना राजकाज त्याग दिया और आशीर्वाद पाने के लिए वे भगवान् शिव की तलाश में निकल पड़े. काशी (वाराणसी) भगवान् शिव की प्रिय नगरी थी. इसलिए पांडव सर्वप्रथम काशी  पहुंचे. परन्तु, भगवान् शिव वहां उन्हें नहीं मिले. कुरुक्षेत्र के युद्ध में हुई हत्याओं से और युद्ध में किये छल और प्रपंच के कारण शिव पांडवों से नाराज थे और उनकी प्रार्थना पर विचार नहीं करना चाहते थे. इसलिए पांडवों से बचने के लिए भगवान् शिव ने भैंसे का वेश धारण कर लिया और गढ़वाल की पहाड़ियों में भूमिगत हो गए. काशी में भगवान् शिव को पाकर पांडव भी गढ़वाल की पहाड़ियों में उन्हें ढूंढ़ने के लिए निकल पड़े. लोककथा के अनुसार गुप्तकाशी (वर्तमान में ये जगह केदारनाथ मंदिर से 45 किमी दूर है) में भीम ने देखा कि एक भैंसा घास चार रहा है. भीम ने भैंसे के रूप में भगवान शिव को पहचान लिया. चूँकि, भगवान् शिव यहाँ गुप्तकाशी में भूमिगत हुए थे इसलिए इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ा. 
  
भगवान् शिव को उनके भैंसे के रूप में पहिचानने के तुरंत पश्चात भीम ने भैंसे की पिछली टाँगे और पूँछ पकड़ ली. परन्तु,भगवान् शिव फिर से भूमिगत हो गए और भैंसे के पांच भागों (फाइव पार्ट्स) के रूप में जगह जगह पुनः प्रकट हुए. पीठ (हंप) केदारनाथ, भुजाएं तुंगनाथ, नाभि और पेट मध्यमहेश्वर, चेहरा रुद्रनाथ और सिर (जटायें) कल्पेश्वर में पाया गया. इन पांच रूपों में भगवान् शिव को पाकर पांडव बहुत खुश हुए और इन्ही स्थानों पर पांडवों ने भगवान् शिव के मंदिर बनाकर शिवजी की उपासना की. इन्ही पांच मंदिरों को संयुक्त रूप से पंचकेदार कहा जाता है. इन पांच मंदिरों की यात्रा करने को ही पंचकेदार की यात्रा कहा जाता है. यह मंदिर निम्नलिखित नामों से जाने जाते हैं. 

1. केदारनाथ मंदिर 2. मध्यमहेश्वर मंदिर 3. तुंगनाथ मंदिर 4. रुद्रनाथ मंदिर 5. कल्पेश्वर मंदिर

पंचकेदार मंदिरों की यात्रा करने के लिए पैदल ही जाना पड़ता है. यह पैदल मार्ग निकटतम सड़क मार्ग से जुड़े हैं जहाँ तक वाहन से यात्रा की जा सकती है. यह सभी निकटतम सड़क मार्ग विभिन्न दिशाओं में विभिन्न यात्रा ाम्रग पर है. इसको दिए गए मानचित्र के द्वारा आसानी से समझा जा सकता है.
पंचकेदार की यात्रा करने के लिए आपको सम्पूर्ण और विस्तृत जानकारी होनी चाहिए. पूरी पंचकेदार यात्रा के लिए कम से कम 15 दिन आपके पास होने चाहिए. यदि आपके पास समय का अभाव है तो यह यात्रा टुकड़ो में भी की जा सकती है. सभी पंचकेदार मंदिर, कल्पेश्वर मंदिर को छोड़कर, पूरे साल में केवल 6 महीने ही खुले रहते है. सामान्यत: ये मंदिर अप्रैल अंत /मध्य मई के महीने से दीपावली तक खुले रहते हैं. शेष समय में मंदिरों के कपाट बंद रहते है. शीत ऋतु में भगवान शिव की मूर्ति केदारनाथ से उखीमठ के ओम्कारेश्वर मंदिर लायी जाती है.जहाँ भगवान शिव की पूजा शेष 6 महीनों तक की जाती है. इसी प्रकार तुंगनाथ मंदिर की मूर्ति की पूजा मक्कूमठ में की जाती है. रुद्रनाथ की प्रतीकात्मक मूर्ति की गोपेश्वर और मध्यमहेश्वर की मूर्ति की पूजा उखीमठ में की जाती है. पंचकेदार की यात्रा के लिए मई, जून, सितम्बर और अक्टूबर महीने सबसे उपयुक्त रहते हैं. जुलाई और अगस्त महीनों में मानसून की वर्षा होने के कारण रास्ता जोखिम भरा हो जाता है. क्योंकि, इन दिनों भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता हैयदि आप एक अच्छे ट्रेकर हैं तो इन स्थानों की यात्रा सर्दियों के मौसम में सभी तैयारियों जैसे उचित वस्त्र, खाने पीने की वस्तुएं, रूकने के इंतजाम के साथ कर सकते हैं. परन्तु, मंदिरों के कपाट आपको बंद मिलेंगें. 

पंचकेदार की यात्रा करने के किये आप अपनी गाड़ी या टैक्सी/बस से निकटतम सड़क मार्ग तक सकते हैं. शेष मार्ग आपको पैदल चल कर ही पूरा करना होगा. पंचकेदार मंदिरों की यात्रा के लिए ऋषिकेश एंट्री पॉइंट है. ऋषिकेश सड़क मार्ग द्वारा दिल्ली से जुड़ा हुआ है. ऋषिकेश की दिल्ली से दूरी 225 किमी है. ऋषिकेश का निकटतम हवाई अड्डा जोली ग्रांट में है जो ऋषिकेश से 21 किमी पर स्थित है.

इन सभी मन्दिरों  की जानकारी तथा इनकी यात्रा कैसे की जाये, यह सब अगली पोस्ट में. केदारनाथ मंदिर   

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